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तीर्थंकर पार्श्वनाथ - कुछ विचारणीय बिन्दु गुणभद्र, वादिराज आदि आचार्यों ने “कर्णे णमोकारमन्त्रं ददौ" ऐसा क्यों नहीं लिखा। इस से ऐसा प्रतीत होता है कि सकलकीर्ति भट्टारक थे और भट्टारक युग का ही यह सब चमत्कार है।
यहाँ यह भी द्रष्टव्य है कि सकलकीर्ति के अनुसार पार्श्वकुमार ने दो खण्डों में विभक्त नाग-नागिन को णमोकार मन्त्र सुनाया था। अत: यह आश्चर्य की बात है कि दो टकड़ों में विभक्त नाग-नागिन में णमोकार मन्त्र सुनने की क्षमता कैसे रही होगी। अधजले नाग-नागिन के विषय में भी यही बात कही जा सकती है। चाहे नाग-नागिन दो टुकड़ों में विभक्त हों अथवा अधजले हों, उस अवस्था में तो वे छटपटा रहे होंगे और णमोकार मन्त्र सुनने में उनका उपयोग कैसे लंगा होगा।
यहाँ एक शंका यह हो सकती है कि यदि पार्श्वकुमार ने नाग-नागिन को णमोकार मन्त्र नहीं सुनाया तो वे धरणेन्द्र-पद्मावती कैसे हुए। इसका उत्तर यही हो सकता है कि मरणासन्न अवस्था में महापुरुष पार्श्वनाथ के दर्शनमात्र अथवा सान्निध्यमात्र से साम्यभाव को धारण करके उनकी . मृत्यु हुई होगी। संभवतः इसी कारण नाग-नागिन मृत्यु के बाद
भवनवासी देवों में धरणेन्द्र और पद्मावती हुए।
: ८. धरणेन्द्र-पद्मावती सात दिन तक क्यों सोते रहे
. यह ध्यान देने योग्य बात है कि ध्यानस्थ पार्श्वनाथ के ऊपर पूर्व वैरी कमठ के जीव द्वारा सात दिन तक भयंकर उपद्रव होता रहा और धरणेन्द्र-पद्मावती को कुछ पता ही नहीं चला। संभवत: आठवें दिन धरणेन्द्र-पदमावती जागे और दौड़े-दौड़े आकर पार्श्वनाथ के ऊपर हो रहे उपसर्ग को दूर किया। यहाँ जिज्ञासा है कि यदि धरणेन्द्र-पद्मावती न आते तो क्या पार्श्वनाथ पर दीर्घकाल तक उपसर्ग चलता रहता। और क्या तब तक पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान उत्पन्न नहीं होता। नहीं, ऐसा नहीं है।
उपसर्ग तो दूर होना ही था। लेकिन उसका श्रेय धरणेन्द्र-पद्मावती को 'अवश्य मिल गया।