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तीर्थंकर पार्श्वनाथ - कुछ विचारणीय बिन्दु
६. तापस मर कर कहाँ उत्पन्न हुआ
श्री पार्श्वजिन कुमारावस्था में अपने मित्रों के साथ भ्रमण करते हुए वाराणसी के निकट एक उपवन में पहुँचे। वहाँ पूर्व भवों का वैरी कमठ का जीव महीपाल नामक तपस्वी पञ्चाग्नि तप कर रहा था । पञ्चाग्नि तप के लिए जो लकड़ियाँ जल रही थीं उनमें से एक लकड़ी के भीतर बैठे नाग और नागिन भी जल रहे थे । श्री पार्श्वजिन ने अवधिज्ञान से इस बात को जानकर इस तपस्वी से कहा कि हिंसामय कुतप क्यों कर रहे हो। इस लकड़ी के अन्दर नाग-नागिन जल रहे हैं। इस बात को सुन कर वह तपस्वी क्रोधित होकर बोला कि ऐसा नहीं हो सकता है । आपने कैसे जान लिया कि इस लकड़ी के भीतर नाग- नागिन बैठे हैं। तब उस तापस को विश्वास दिलाने के लिए' कुल्हाड़ी मंगाकर लकड़ी को काटा गया और पार्श्वकुमार ने जलती हुई लकड़ी से अधजले नाग-नागिन को बाहर निकाला। श्री पार्श्वजिन की इस बात से वह तापस क्रोधित हो गया कि इन्होंने मेरी तपस्या में विघ्न उपस्थित कर दिया है । वह पूर्व भवों का वैरी तो था ही, किन्तु इस घटना से उसने श्री पार्श्वजिन के साथ और भी • अधिक वैर बाँध लिया। तथा कुछ काल के बाद उसका मरण हो गया। यहाँ विचारणीय यह है कि मृत्यु के बाद वह कहाँ उत्पन्न हुआ।
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: आचार्य गुणभद्र के अनुसार वह तापस मरकर शम्बर नामक ज्योतिषी दैव हुआ। इस विषय में गुणभद्राचार्य ने उत्तरपुराण में लिखा है
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सशल्योंमृतिमासाद्य शम्बरो ज्योतिषामर: ७३ / ११७
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- इस मत के विपरीत वादिराजसूरि के अनुसार वह तापस मर कर भूतानन्द नामक भवनवासी देव हुआ । इस विषय में उन्होंने पार्श्वनाथचरित में लिखा है
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लक्ष्मीधाम श्री जिन धर्मादपि बाह्य: कायक्लेशादायुरपाये स तपस्वी । देवो जातः ज्ञातिमयासीदपि नाम्ना भूतानन्दो भवनदेवेष्वसुरेषु ।। १०/८८
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आचार्य गुणभद्र और वादिराजसूरि प्रतिभाशाली और शास्त्रज्ञ विद्वान थे। किन्तु वे न तो अवधिज्ञानी थे और