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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
आचार्य गुणभद्र के अनुसार वह तापस अग्नि में डालने के लिए एक मोटी लकड़ी को काट रहा था। यह देख कर पार्श्वकुमार ने उस तापस से कहा कि इस लकड़ी को मत काटो। इसके अन्दर नाग-नागिन बैठे हैं। किन्तु वह तापस नहीं माना और उसने लकड़ी को काट डाला। तब लकड़ी को काटते समय उसके अन्दर बैठे हुए नाग-नागिन के दो टुकड़े हो गये। इस बात को गुणभद्राचार्य ने उत्तरपुराण में इस प्रकार लिखा है -.
नागी नागश्च तच्छेदात् द्विधाखण्डमुपागतौ। ७३/१०३ पार्श्वनाथ चरित के रचयिता वादिराज सूरि के अनुसार पञ्चाग्नि तप करते समय अग्नि में जलती हुई लकड़ी के अन्दर बैठे हुए नाग-नागिन जल रहे थे। पार्श्वकुमार के कहने पर तापस को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इस लकड़ी के अन्दर नाग-नागिन हो सकते हैं। तब पार्श्वकुमार ने .. लकड़ी को काट कर उसमें से अध जले नाग-नागिन को बाहर निकाला था। इस विषय में वादिराजसूरि ने पार्श्वनाथचरित में लिखा है
प्रहसित वदनाम्बुजस्तबुक्तया भुवन गुरुभगवास्तु तत्प्रतीत्यै । अदलयदन लार्घदग्धमेध: परिदृढमुष्टिपरस्वधेन तेन ।। १०/८३
उक्त दोनों आचार्यों के अनुसार नाग-नागिन की मृत्यु के विषय में मत भेद स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है। एक आचार्य के अनुसार लकड़ी को काटने से नाग-नागिन की मृत्यु हुई और दूसरे आचार्य के अनुसार उनकी मृत्यु अग्नि में जलने के कारण हुई। इस मत भेद का कारण क्या है? इस मतभेद का कारण यही हो सकता है कि उस समय नाग-नागिन की मृत्यु के विषय में दो प्रकार की जन श्रुति चली आ रही होगी। एक जन श्रुति क अनुसार नाग-नागिन की मृत्यु तापस द्वारा लकड़ी को काटते समय नाग-नागिन के दो टुकड़े हो जाने के कारण हुई और दूसरी जन श्रुति के अनुसार उनकी मृत्यु जलती हुई लकड़ी के अन्दर बैठे रहने के कारण हुई। इस विषय में जिस आचार्य को जो उचित प्रतीत हुआ उसे उन्होंने स्वरचित ग्रन्थों में लिख दिया। वास्तव में नाग-नागिन की मृत्यु कैसे हुई, इसे जानने का या निर्णय करने का अब कोई उपाय या प्रमाण नहीं है।