________________
तीर्थंकर पार्श्वनाथ - कुछ विचारणीय बिन्दु ___ जब कमठ के जीव शम्बर नामक देव ने ध्यानमग्न पार्श्वनाथ पर पूर्व वैर के कारण भयंकर उपसर्ग किया तब पूर्वकृत उपकार के कारण धरणेन्द्र नामक भवनवासी नागकुमार जाति के देव ने विक्रिया द्वारा नाग का रूप बनाया। उस नाग के बड़े बड़े फण थे। उसने उन फणों का मण्डलाकार मण्डप बनाया और उसे ध्यानमग्न पार्श्वनाथ पर तान दिया। ऐसा करके धरणेन्द्र ने भयंकर आंधी, वर्षा आदि के उपसर्ग को दूर करने में सहयोग किया। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि उक्त श्लोक में केवल धरणेन्द्र का नाम आया है, पद्मावती का नाम उस में नहीं है।
- आचार्य समन्तभद्र के बाद आचार्य यतिवृषभ (पंचम शताब्दी) ने तिलोयपण्णत्ती के चतुर्थ अधिकार में पार्श्वनाथ के जीवन से सम्बन्धित कुछ बातों को सूत्र रूप में लिखा है। इस में विशेष घटनाओं का कुछ भी वर्णन नहीं है। तदनन्तर पार्श्वनाथ के अठारह सौ वर्ष बाद हुए गुणभद्राचार्य (नवमी शताब्दी) ने उत्तरपुराण के ७३वें पर्व में १७० श्लोकों द्वारा पार्श्वनाथ के जीवन में घटित घटनाओं को कुछ विस्तार से लिखा है। इसके बाद पार्श्वनाथ के दो हजार वर्ष बाद हुए वादिराजसूरि (ग्यारहवीं शंताब्दी) ने पार्श्वनाथचरित नामक एक महाकाव्य की रचना की, जिसमें १२ सर्ग हैं और १३५८ श्लोक हैं। इस ग्रन्थ में पार्श्वनाथ के जीवन की घटनाओं को अधिक विस्तार से लिखा गया है।
. ५.. नाग-नागिन की मृत्यु कैसे हुई
जब पार्श्वनाथ १६ वर्ष के थे तब उनको एक अनुचर से ज्ञात हुआ कि वाराणसी के निकट एक उपवन में एक तापस पञ्चाग्नि तप कर रहा है। पार्श्वकुमार ने अवधिज्ञान से जान लिया कि यह तापस कमठ का ही जीव है। तब उसे देखने की इच्छा से तथा उसको कुतप से विरत करने की भावना से पार्श्वकुमार हाथी पर बैठ कर उपवन में पहुँचे। वहाँ जो तापस पञ्चाग्नि तप कर रहा था वह पार्श्वनाथ का नाना अर्थात् माता का पिता महीपाल था। वह पञ्चाग्नि तप में लीन था। इस तप में तापस अपने चारों और अग्नि जला कर उसके बीच में बैठ जाता है और उसकी दृष्टिं ऊपर सूर्य की ओर रहती है। इसे पञ्चाग्नि तप कहते हैं।