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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
स्वयम्भूस्त्रोत्र में ५ श्लोकों द्वारा पार्श्वनाथ का स्तवन करते हुए किया है। इनमें से प्रथम श्लोक में कमठ के जीव शम्बर देव द्वारा किये गये उपसर्ग का तथा द्वितीय श्लोक में धरणेन्द्र द्वारा किये गये उपसर्ग के निवारण का वर्णन है। प्रथम श्लोक इस प्रकार है -
तमालनीलैः सधनुस्तडिद्गुणे: प्रकीर्णभीमा शनि वायु वृष्टिभिः । बलाहकै वैरिवशैरुपद्रितो महामना यो न चचालं योगतः ।।
अर्थात तमाल वृक्ष के समान नील वर्णयुक्त, इन्द्रधनुषों सम्बन्धी बिजली रूपी डोरियों से सहित, भयंकर वज्र, आंधी और वर्षा को बिखेरने वाले तथा शत्रु शम्बर देव के वशीभूत मेघों के द्वारा उपद्रवग्रस्त होने पर भी महामना श्री पार्श्वजिन योग (ध्यान) से विचलित नहीं हुए। क्योंकि वे महामना अर्थात् इन्द्रियों और मन पर विजय प्राप्त करने में तत्पर थे।
इस प्रकार शम्बर नामक ज्योतिषी देव पूर्व बैर के कारण ध्यानमग्न पार्श्वनाथ पर ७ दिन तक भयंकर उपद्रव करता रहा। उसने भयंकर मेघ वर्षा के साथ ही पत्थर बरसाये, भयानक आंधी तूफान उत्पन्न किया, बिजलियाँ चमकाईं और उस से जितना भी जो कुछ भी उपद्रव बन सकता था वह सब उसने किया। परन्तु पार्श्वनाथ तो महामना थे, इन्द्रिय और मन को वश में करके कर्म शत्रुओं को जीतने वाले थे। अत: वे कमठ के जीव द्वारा किये गये भयंकर उपसर्ग से किञ्चितमात्र भी विचलित नहीं हुए।
अब द्वितीय श्लोक में धरणेन्द्र द्वारा उपसर्ग निवारण का दृश्य देखिए बृहत्फणामण्डलमण्डपेन यं स्फुरत्तडितपिंङगरुचोपसर्गिणम् । जुगूह नागो धरणो धराधरं विरागसंध्यातडिदम्बुदो यथा।।
अर्थात. उपसर्ग से युक्त ध्यानमग्न पार्श्वनाथ को धरणेन्द्र नामक नागकुमार जाति के देव ने बिजली के समान पीली क्रान्ति को धारण करने वाले बड़े बड़े फणों के मण्डल रूप के द्वारा उसी प्रकार वेष्टित कर लिया था जिस प्रकार काली संध्या के समय बिजली से युक्त मेघ पर्वत को वेष्टित कर लेता है।