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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ उन्हें इक्ष्वाकुवंशी भी उल्लिखित किया गया है। पार्श्व की माता जब गार्भिणी थी, तब उन्होंने पार्श्व-पास में एक सर्प देखा था, इसी कारण उनका नाम पार्श्व रखा गया था। कहीं-कहीं ऐसा भी कहा गया है कि जन्मकल्याणक के समय इन्द्र ने उनका नामकरण पार्श्व किया था। पार्श्व की आयु जब 16 वर्ष थी तब उनके जीवन में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटित हुई। एक बार वे वनक्रीडा के लिए उद्यान में गये। वहाँ उनका नाना महीपाल. पत्नी के वियोग से दु:खी होकर पंचागिन तप कर रहा था। वह तापस एक लकड़ी को काटने ही वाला था कि कुमार पाव ने उसे रोकते हुए कहा कि इसमे दो प्राणी हैं, इसे मत काटो। परन्तु घमण्ड के कारण तापस महीपाल नहीं माना। उसके कुल्हाड़े से एक नागयुगल कट गया। कुमार पार्श्व ने दयार्द्र भाव से उस नागयुगल को पञ्चनमस्कार मन्त्र सुनाया। इस मन्त्र के प्रभाव से वह नागयुगल धरणेन्द्र एवं पद्मावती नामक नागजातीय देवयुगल के रूप में उत्पन्न हुए। कुमार पार्श्व ने 30 वर्ष की अवस्था में अयोध्या नरेश जयसेन के दूत द्वारा प्रसंगतः आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का वर्णन सुना। इसे सुनकर वे संसार से विरक्त हो गये तथा 300 अन्य राजाओं के साथ पौष कृष्णा एकादशी को दीक्षा ग्रहण कर ली। केशलौंच करने के बाद वे. गुल्मखेट नगर पहुँचे जहाँ राजा धन्य ने उन्हें नवधा भक्ति पूर्वक आहार दिया। सम्पूर्ण दिगम्बर परम्परा पार्श्वनाथ को बालयति (अविवाहित) मानती है। श्वेताम्बर परम्परा में भी विवाह का उल्लेख बहुत अर्वाचीन है। श्वेताम्बर ग्रन्थ आवश्यक नियुक्ति और कल्पसूत्र में तो स्पष्ट कहा गया है कि उन्होंने स्त्री और अभिषेक के बिना कुमारावस्था में प्रव्रज्या ली थी। समवायांग सूत्र में विवाह का प्रसंग ही नहीं उठाकर केवल इतना कहा गया है कि पार्श्वनाथ ने कुमारवस्था में ही दीक्षा ले ली थी। वि० सं० 925 में शीलांक ने 'चउपन्नमहापुरिसचरिय' में सर्वप्रथम उल्लेख किया है कि राजा प्रसेनजित् की पुत्री प्रभावती से उनका विवाह हआ था। यह उल्लेख शीलांक ने किस आधार पर किया है - यह कहना संभव नहीं है। इसके बाद 13वीं शताब्दी के हेमचन्द्राचार्य तथा
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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