SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ तीर्थंकर पार्श्वनाथ १३०० से १५०० के बाद की हैं ताम्र यंत्र उत्कीर्णित है पर विवरण ज्ञात न हो सका। कला और इतिहास की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण नहीं लगी। (३३)मालादेवी के प्रभुपार्श्व : विदिशा जिले की ग्यारसपुर तहसील में माला देवी का मंदिर पुरातत्वीय इतिहास में अति महत्वपूर्ण है। यह कला एवं स्थापत्य की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व. राजेन्द्र बाबू लगभग १९५२-५३ में यहां कला एवं स्थापत्य को देखने आये थे तो उस समय की सारी रिपोर्टिंग मैने बम्बई नवभारत टाइम्स के लिए भेजी थी। यहां पांच फुट ऊंची पाषाण की कायोत्सर्ग मुद्रा में एक पूरी चौबीसी उत्खनन में प्राप्त हुई थी, मूर्ति अतिरम्य और मनोज्ञ है, खजुराहो की शैली में निर्मित है, मूर्ति के सिर पर छत्र है। उसके ऊपर सप्तफणावली उत्कीर्णित है, प्रभु के अगल बगल में पुष्पमाला लिए देवियां खड़ी हैं तथा चारों ओर २३ छोटी छोटी तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं इसका निर्माण काल दसवी सदी प्रतीत होता है। इसे नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया है। इस तरह कुछ पार्श्व प्रभु की प्रतिमाओं का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है। इनके अतिरिक्त भी और बहुत सी पार्श्व प्रतिमाएं होंगी जिनका संकलन के लिए प्रयत्नरत होना चाहिए। मुनिजनों से विनम्र प्रार्थना है कि ऐसे कार्यों के लिए समाज को प्रेरित करें जिसके लिए एक विशाल ध्रौव्य फंड की स्थापना हो। जिसके द्वारा पांडुलिपियों का केटलाग बने, पुराने मंदिरों में स्थित मूर्तियों का भी केटलाग तैयार कराया जाये, ताम्रयंत्र और रजतयंत्र भी इतिहास के पर्दे उघाड़ने के प्रबल स्त्रोत हैं। हम २१वीं सदी में जाने वाले हैं अत: हमें भी तदपुरुष बनने का प्रयत्न करना चाहिए। नार्थ अमेरिका में जैन एकेडेमिक फाउन्डेशन की स्थापना हो गई है जिसके अन्तर्गत इन्साइकिलोपीडिया आफ जैनिज्म के प्रकाशन की तैयारियां हो रही हैं। एक और संस्था जैनिज्म न्यू एजेज की तैयारी में है। यहां मेरा छोटा सा सुझाव है कि जब मंदिरों पाठशालाओं के अधिकारी मंत्री अध्यक्ष के चुनाव होते हैं तो बड़ा कांटे का संघर्ष होता है और येन केन प्रकारण अधिकारी चुने जाते
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy