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________________ प्रभु पार्श्व की कतिपय कलापूर्ण ऐतिहासिक प्रतिमायें ३५१ प्रतिमा विराजमान है। इन्हें तिखाल वाले बाबा कहा जाता है। फणावली से युक्त ध्यानस्थ प्रभु के पाद पीठ पर सर्प का लांछन उत्कीर्णित है। यह अतिशय पूर्ण प्रतिमा है। इसमें कोई लेख न होने से काल निर्णय करना कठिन है। यहां ग्रामीण अंचल के लोग इन्हें “तिखाल वाले बाबा" की जय बोलकर अपनी मनौतियां पूर्ण करते हैं । २९) मसार के प्रभु पार्श्व - सं १८७६ (१८१९ ई.) में मसाढ़ नगर ( कासय देश) के जिन मंदिर में अरामनगर ( आरा - शाहाबाद) के बाबू शंकरलाल तथा पुत्रों ने पार्श्व प्रभु की प्रतिमा समर्पित की थी। इसमें बड़ा लेख है जिसमें भट्टारकों तथा शंकरलाल के परिवारिक जनों का उल्लेख है। इस समय भ. महेन्द्र भूषध जी विराजमान थे (३०) पभोसा के प्रभु पार्श्व स. १८८१ - (१८२४ ई.) में काष्ठा संघ, माथुर गच्छ, पुष्कर गण लोहाचार्य की परम्परा में भ. ललितकीर्ति के उपदेश से प्रयाग नगर वासी गोयल गोत्रिय रामजी मल्ल की परम्परा में श्री हीरालाल पभोसी (कौशम्बी) में पार्श्व प्रभु की प्रतिष्ठा कराई थी । (३१) तिजारा के प्रभु पार्श्व - अलवर जिले की तहसील तिजारा जो चन्द्र प्रभु की सातिशय प्रतिमा के कारण प्रसिद्ध स्थान बन गया है, वहीं ग्राम में पार्श्वनाथ का प्राचीन मंदिर है। यहां पार्श्वनाथ की सफेद पाषाण की पद्मासन मुद्रा में प्रतिमाएं विराजमान हैं। ये सं. १५०० के बाद की हैं। ताम्रयंत्र तथा रजत यंत्र भी हैं जिनमें भी जैन इतिहास के तथ्य छिपे पड़े हैं इनका पढ़ा जाना जरूरी है। (३२)कासन : तिजारा जाते हुए मार्ग में गुडगांव जिला का एक छोटा सा ग्राम है। यहां जुलाई १९९७ में एक मकान मालिक सेप्टिक टैंक के गड्ढा खुदवा रहे थे तो ६: फुट की निचाई पर एक बढ़ा घड़ा मिला जिसमें १२ पीतल की तथा एक पाषाण की १३ प्रतिमाएं तथा ताम्र यंत्र प्राप्त हुए। यहां आजकल भक्तों की इतनी भीड़भाड़ है कि कुछ लिख पढ़ पाना बड़ा मुश्किल है। वैसे व्यवस्थापकों ने बताया कि ये सं.
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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