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तीर्थंकर पार्श्वनाथ : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में
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: नाग (सर्प), कुमार काल : ३० वर्ष, राज भोग नहीं किया, कुमार श्रमण हुए और जन्म से मति, श्रुति, अवधि तीन ज्ञान के धारी थे।
३. तप कल्याणक
वैराग्य का निमित्त कारण : जाति स्मरण होना, दीक्षा तिथि : पौष कृष्ण ११, दीक्षा समय : पूर्वाहन, दीक्षा नक्षत्र : विशाखा, दीक्षा पालकी: विमला, दीक्षा वृक्ष: धवल, दीक्षा नगर : वाराणसी, दीक्षा वन: अश्व वन, पारायण नगर : सेठपुर (गुलम खेट या द्वारावती), आहार देने वाले का नाम : धान्यसेन, आहार : दूध की खीर, कितने राजाओं के साथ दीक्षा ली: ३००, केवल ज्ञान प्राप्त होने से पूर्व अहिछत्र मे तोले (३) का उपवास धारण किया।
४. ज्ञान कल्याणक
केवल ज्ञान' की तिथि : चैत्र कृष्ण ४, समय : पूर्वाह्न, नक्षत्र: विशाखा, वन उद्यान : काशी, वृक्ष : शाल वृक्ष, केवल ज्ञान का स्थान : वर्तमान अहिछत्र, गणंधरों की संख्या : १०, मुख्य गणधर :स्वयंभु, मुख्य अर्जिका का नाम : सुलोचना, मुख्य श्रोता का नाम : अजित, यक्ष का नाम: धर्णेन्द्र, यक्षिणि का नाम : पद्मावती, समवशरण विस्तार : सवा योजन (पांच कोस), मोक्ष प्राप्ति से एक माह पर्व विहार बन्द किया।
.. केवल अवस्था का काल प्रमाण : ६ माह कम ७० वर्ष । ५.. मोक्ष कल्याणक _ निर्वाण तिथि : श्रावण शुक्ल ७, निर्वाण समय : पूर्वाह्न, नक्षत्र : विशाखा, निर्वाण स्थान : श्री सम्मेद शिखर जी, निशिष्ट स्थान : स्वर्ण भद्रकूट, आसन निर्वाण : कायोत्सर्ग (खड़गासन), आयु : १०० वर्ष, मोक्ष प्राप्ति : ईसा से ७७७ वर्ष पूर्व, पदवी धारक : जन्म से मति, श्रुति, अवधि,
तीन ज्ञान के धारी तथा बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर, काया की ऊंचाई: नौ . हाथ, शेष मन : पर्यय ज्ञान एवं केवलज्ञान इस प्रकार पांचो ज्ञान के धारी