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तीर्थकर पार्श्वनाथ
शिल्प में उल्लेख का स्मरण करते हुए उनकी ऐतिहासिकता का
औचित्य सिद्ध किया। द्वितीय आलेख पं. निर्मल जैन (सतना) ने 'कहां हुआ कमठ का उपसर्ग' अहिच्छेत्र एवं बिजौलिया का परिचय देकर बिजौलिया को उपसर्ग स्थली बताया किन्तु विद्वान् इससे सहमत नहीं हुए। तृतीय आलेख डॉ. सुरेशचन्द जैन (वाराणसी) ने 'काशी की श्रमण परम्परा और पार्श्वनाथ' विषयक आलेख के माध्यम से काशी की ऐतिहासिकता एवं श्रमण परम्परा के साक्ष्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। संगोष्ठी संयोजक डॉ. अशोक कुमार जैन (रुड़की) ने अपने उद्बोधन के माध्यम से पार्श्वनाथ के समय की वास्तविक शोध एवं जैन संस्कृति के संरक्षण की अपील की। बाल देवर्द्धि मिलिन्द (मैसूर) ने मंगल श्लोकों का पाठ किया। संगोष्ठी का प्रतिवेदन डॉ. जयकुमार जैन (मुनगर) ने प्रस्तुत किया। तदन्तर डॉ. प्रकाश चन्द जैन (दिल्ली) संगोष्ठी की उपलब्धियों पर संस्कृत रचना प्रस्तुत की। सभी आगन्तुक विद्वानों को प्रशस्ति पत्र ग्रंथ पुष्पहार एवं तिलक लगाकर सम्मान दिया गया।
संगोष्ठी के प्रति अपना दृष्टिकोण डॉ. शुभचन्द जैन (मैसूर) एवं डॉ. मारूतिनन्दन तिवारी ने व्यक्त किया तथा इस संगोष्ठी को उत्तर एवं दक्षिण के मेल का प्रमुख सफल आयाम निरूपित किया।
श्री जम्बूस्वामी दि. जैन सिद्धक्षेत्र चौरासी मथुरा के अध्यक्ष श्री सेठ विजय कुमार जैन ने संगोष्ठी में आगन्तुक विद्वानों के प्रति आभार माना तथा कहा कि आप सबके विचारों से हमें (मथुरावासियों को भी) मथुरा की जैन मूर्तियों का परिचय मिला उन्होंने श्री जम्बूस्वामी एवं मथुरा के मूर्ति शिल्प पर एक पृथक सेमिनार एवं परिचयात्मक ग्रंथ बनाने हेतु आगे आने की अपील की।
डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि पूरे देश में प्रथम बार तीर्थंकर पार्श्वनाथ के जीवन एवं साहित्य के विषय
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