SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० तीर्थकर पार्श्वनाथ उन्नत चट्टान पर गंधकुटी में विराजमान सदृश पार्श्व प्रभु की मूर्ति तथा ढाई हजार वर्ष प्राचीन मंदिर में भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति नावल, वल्ले, वोलिय, मल्लूर में है। केरल कल्लिन-सुल्तान बेटरी में प्राकृतिक गुफा में भगवान् पर्श्वनाथ का बिम्ब है। कर्नाटक कर्नाटक जैन मूर्ति कला एवं जैन संस्कृति का प्रमुख केन्द्र राज्य रहा है। यहाँ के हलेविड-द्वारसमुद्रम् में सन् ११३३ में महाराज विष्णु वर्द्धन के सेनापति बोध द्वारा निर्मित "विजय पार्श्वनाथ वसदि" में १४ फुट उत्तुंग भगवान पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमा प्रतिष्ठित है। धर्मस्थल में हेगड़े निवास के जिनालय के ऊपर की मंजिल में स्वर्ण निर्मित तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा, मूडविद्री के गुरूवसदि में सन् ७१४ में प्रतिष्ठित भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा, जैनमठ वसदि में मूलनायक पार्श्व प्रतिमा, हुम्मच पद्मावती, कुंदाद्रि पर्वत, वरंग, कारकल, स्तवनिधिन्तावन्दी अतिशय क्षेत्र, बादामी, कमठान : भूमिगत पार्श्वनाथ आदि के मन्दिरों में भ. पार्श्वनाथ की उत्कृष्ट मूर्तियां हैं। __बीजापुर में सहस्त्र फणी पार्श्वनाथ (५ फुट ऊंची), अन्य दो प्रतिमायें भी पार्श्व की है। यहाँ की मूर्ति की विशेषता अद्वितीय है क्योंकि सातफणों वाली पार्श्वनाथ प्रतिमा के केश भी दिखाये गये हैं। यह प्रतिमायें. १०वी से १४वी शताब्दी के मध्य की हैं। पंजाब . अमृतसर में विश्वप्रसिद्ध स्वर्ण मन्दिर गुरूद्वारा के सामने स्थित जैन मंदिर में ३०५ वर्ष प्राचीन डेढ़ फुट ऊँची, मुंगई रंग की सहस्त्रफणी भ. पार्श्वनाथ की दिव्य प्रतिमा है। यह मूर्ति अत्यन्त चित्ताकर्षक है।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy