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भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्तियों का वैशिष्ट्य
३१५ __ ऐलोरा की गुफायें -औरंगाबाद से २९ कि.मी. दूर विश्व प्रसिद्ध ऐलोरा की गुफायें हैं जिनमें क्र. ३० से ३४ तक ५ गुफायें जैन गुफाओं के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनका निर्माण राष्टकूट और एलवंशी नरेशों ने (७वीं से १०वी शताब्दी तक) कराया था। इन गुफाओं में उत्कीर्ण भ. पार्श्वनाथ की भव्य मूर्तियों से उनकी प्राचीनता एवं जीवन का बोध होता है। ऐसी मूर्तियां एवं सम्बन्ध मूर्तियां जिन से उनकी विशेषतायें प्रकट होती हैं अन्य स्थानों पर दुर्लभ हैं। कुछ मूर्तियों का परिचय दृष्टव्य है।
. ३२ नं. गुफा में मुख्य मंदिर में मुख्य वेदी के बायीं ओर भ० पार्श्वनाथ की मूर्ति है जिसे पूरे सर्प ने पीछे चरणों से पांच वलय बनाये हैं, सात फण हैं, ऊपर दण्डयुक्त छत्र है। एक ओर यक्ष इन्द्रादि चँवर डुलाकर भक्ति कर रहे हैं दूसरी ओर धरणेन्द्र पद्मावती भक्ति कर रहे हैं। इसी गुफा में नीचे बायें पार्श्वनाथ की मूर्ति सप्त फण युक्त है। दोनों ओर ८ यक्ष हैं। देवगण अर्चना करते ऊपर की ओर उत्कीर्ण हैं। कमल पर पार्श्वनाथ की मूर्ति है।
३३ नं. गुफा में मुख्य वेदी के बायीं ओर पद्मासन युक्त भ. पार्श्वनाथ की मूर्ति है फण सहित इस मूर्ति के पीछे भामण्डल एवं २४ तीलियों से युक्त चक्र है जो उनके धर्मचक्र एवं अतिशयता को मुखर कर रहा है। इसी गुफा के परिक्रमा भाग में सवा दो हाथ उतुंग ६ कुण्डलीयुक्त सर्प फणालंकृत पद्मासन युक्त पार्श्वनाथ की मूर्ति है। मुख्य दरवाजे के बायीं ओर .यक्ष-यक्षिणी सहित पद्मासन मुद्रा में भ. पार्श्वनाथ विराजमान हैं। उसी के बायीं ओर २ हाथउतुग खड़गासन पार्श्व प्रभु एवं बायीं ओर मुख्य दरवाजे पर खड़गासन पार्श्वनाथ विराजमान हैं। ___.३३ नं० गुफा के बायें भगवान् पार्श्वनाथ की पाँच हाथ उतुंग खड़गासन प्रतिमा है जो सम्पूर्ण विश्व में अद्वितीय है इस मूर्ति के पार्श्व में कमठ शंबर देव द्वारा उपसर्ग की भयावहता उत्कीर्ण की है। शेर पर सवार होकर त्रिशूल से प्रहार करते हुए चिंघाड़ते हुए रौद्र मुद्रा - दाँत दिखाते हुए शंबर देव मध्य में ध्यानस्थ पार्श्वप्रभु, सातफण से उपसर्ग निवारण, दण्डयुक्त त्रिछत्र का वैभव, ऊपर एक ओर अभय का प्रतीक हाथ, दूसरी