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________________ ३१४ तीर्थंकर पार्श्वनाथ - कुण्डल-कलिकुण्ड पार्श्वनाथ : कुण्डल (सांगली जिले में स्थित) यह अतिशय क्षेत्र विख्यात है। यहाँ कलिकुण्ड पार्श्वनाथ जिनालय है। जिसमें मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथ हैं। यहाँ के विषय में किंवदन्ती है कि इस नगर में सत्येश्वर नामक राजा राज्य करता था, जो बहुत बीमार रहता था उसका बहुत उपचार करने पर भी स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ। यहाँ तक कि वह मरणासन्न दशा तक पहुँच गया तब उसकी रानी पदमश्री ने पत्थर जमा करके पार्श्वनाथ की मूर्ति तैयार करायी और बड़े भक्तिभाव से इसकी पूजा करने लगी। धीरे-धीरे राजा के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा और वह बिल्कुल ठीक हो गया। इससे राजा और प्रजा सभी इस चमत्कारी मूर्ति के भक्त बन गये। यह तभी से अतिशय सम्पन्न मूर्ति के रूप में प्रसिद्ध यहाँ पंचामृताभिषेक की परम्परा है। कहते हैं कि इस मूर्ति के अभिषेक . के लिये जिस गाँव से दूध आता था उसका नाम 'दुधारी' पड़ गया। जिस गाँव से कुम्भ (नारियल) आता था, उसका नाम 'कुम्भार' और जिस. गाँव से फल आते थे उस गांव का नाम ‘फलस' पड़ गया। ये गांव अब भी विद्यमान हैं और क्षेत्र के निकट ही हैं। कुण्डल ग्राम से २ कि.मी. दूर पहाड़ी पर नैसर्गिक गुफा में भी भ. पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। इस क्षेत्र को झरी पार्श्वनाथ कहते हैं। झरी पार्श्वनाथ से ४ कि.मी. पर्वत मार्ग पर आगे दूसरे पहाड़ गिरि पार्श्वनाथ पर सप्तफणी पार्श्वनाथ का मंदिर है। गजपंथा (सिद्ध क्षेत्र) : नासिक से ६ कि.मी. दूर यह स्थान बलभद्र एवं ८ करोड़ मुनियों की निर्वाण भूमि है। यहां भ. पार्श्वनाथ की उत्खनन से प्राप्त अतिप्राचीन दस फुट चार इंच अवगाहनावाली ९ फणों से युक्त प्रतिमा है। एक अन्य हाथी पर सवार ६: फुट ऊँची पद्मावती के शीर्ष पर पार्श्वनाथ की मूर्ति है दूसरी ऐसी ही पद्मावती की मूर्ति सिंह पर आरूढ़ है। दूसरी गुफा में पार्श्वनाथ की तीन प्रतिमायें एक वेदी में विराजमान हैं। इन गुफाओं की लगभग ९०० वर्ष पूर्व मैसूर के महाराजा चामराज ने जीर्णोद्धार कराकर प्रतिष्ठा कराई थी।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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