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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ ओर हिंसा एवं विनाश का प्रतीक हाथ में घन (हथौड़ा) नीचे मूर्ति के बायीं ओर भक्ति की प्रसन्न मुद्रा में धरणेन्द्र और पद्मावती की मुद्रा उत्कीर्ण की गयी है। इस प्रकार की मूर्ति एवं चित्रण. शिल्पियों के शिल्पज्ञान की पराकाष्ठा एवं जैनत्व विशेषकर भ. पार्श्व प्रभु के उपसर्ग एवं उपसर्ग निवारण के सम्यक् बोध का परिचायक है। इस दृश्य में धरणेन्द्र आगे एवं पद्मावती पीछे हैं, इससे जो लोग यह मातने हैं कि पद्मावती ने ही उपसर्ग दूर किया, इस तथाकथित धारणा का भी खण्डन हो जाता है। . ___३४ नं. की गुफा में बायीं ओर ३३ नं. की तरह ही मूर्ति भ. पार्श्व की अंकित हैं। नीचे से ऊपर सिर तक सर्प-फण, शेर का मुख सामने है। दोनों ओर से उपसर्ग होता दिखाई देता है जिसमें एक ओर भाले से एवं दूसरी ओर दण्ड से प्रहार किया जा रहा है। इस बीच भ. पार्श्व की. दिव्य आभा युक्त मनोहारी मुद्रा परम शान्ति का उद्घोष करती हुई सी प्रतीत होती है। - इस प्रकार ऐलोरा की पार्श्व प्रतिमायें इतिहास बोध को कराने वाली, यथेष्ट छवि एवं संसार वैराग्य की छवियों को उत्कीर्ण करने वाली ऐतिहासिकता को उदघोषित करती हैं। पार्श्व प्रभु के प्रति ऐतिहासिक रुचि रखने वालों के लिए एक बार ऐलोरा की मूर्तिकला के अवश्य दर्शन करना चाहिए। चिन्तामणि पार्श्वनाथः कचनेर ___ औरंगाबाद नगर से ३५ कि.मी. दूर दक्षिण में महावीर जी के समान लोकप्रिय कचनेर तीर्थ है जहाँ पार्श्वनाथ की मूर्ति की अतिशयता अद्वितीय है। लगभग २५० वर्ष पूर्व भूगर्भ से प्राप्त यह मूर्ति एक बार धड़ से खंडित हो गयी थी किन्तु ७ दिन तक विशेष विधि से भूमि के अन्दर रखने के बाद निकालने पर जुड़ी हुई निकली। इस मूर्ति की विशेषता है कि किसी भी ओर से देखने पर देखने वाले की ओर हँसती हई सी दिखाई देती है। मेले के समय यहाँ सैकड़ों लोग बम्बई, औरंगाबाद, इन्दौर, अकोला एवं आसपास के
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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