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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ समवशरण के प्रमुख केन्द्र उत्तर प्रदेश में हैं । भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी नामक नगरी में राजा अश्वसेन के यहाँ रानी वामादेवी के गर्भ से हुआ था। १३ भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म जहाँ हुआ था, वह स्थान वर्तमान में भेलूपुर नामक मौहल्ला के रूप में वाराणसी में जाना जाता है। यहाँ दो मन्दिर बने हैं। मुख्य वेदी पर तीन प्रतिमायें विराजमान हैं उनमें तीसरी प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथ की है। सिर पर फण तथा पीठिका पर सर्प का लांछन तथा लेख अंकित है । लेख के अनुसार इसकी प्रतिष्ठा संवत् १५६८ में हुई थी। पीछे वाम आले में दो दिगम्बर प्रतिमायें हैं । मूर्तिलेख के अनुसार इनका प्रतिष्ठांकाल वि. सं १९५३ है । इसी के साथ दूसरी मूर्ति कृष्ण पाषाण की पद्मासन मुद्रां में भगवान पार्श्वनाथ की है जो कि अत्यन्त मनोज्ञ है । १४ ३१० अहिच्छत्र : यह बरेली जिले में अवस्थित प्रमुख अतिशय क्षेत्र है। जब पार्श्वप्रभु तपस्यारत थे तब पूर्वजन्मों के वैरी कमठ के जीव देव शम्बर ने उन पर भयंकर उपसर्ग किया तभी धरणेन्द्र ने पद्मावती सहित आकर सर्प का छत्र बनाकर उपसर्ग निवारण किया तभी से इस क्षेत्र का नाम अहिच्छत्र पड़ गया। प्राकृत निर्वाणकाण्ड के अतिशय क्षेत्र काण्ड में भी “महुराए अहिछत्ते वीरं पासं तहेव वंदामि” पाठ द्वारा भगवान् पार्श्वनाथ के साथ अहिच्छत्र का सम्बन्ध सूचित किया है। १५ अहिच्छत्र में वसुपाल राजा ने एक भव्य सहस्त्रकूट चैत्यालय का निर्माण कराकर भगवान् पार्श्वनाथ की ९ हाथ ऊँची लेपदार प्रतिमा विराजमान की थी । १६ यहां स्थित प्राचीन क्षेत्र पर बायीं ओर एक छोटे गर्भ ग्रह में वेदी है जिसमें तिरखान वाले बाबा (भगवान् पार्श्वनाथ) की प्रतिमा विराजमान है। प्रतिमा सौम्य एवं चित्ताकर्षक है । प्रतिमा का निर्माण काल १०-११ वीं शताब्दी अनुमान किया जाता है ।" यहाँ अन्य नवीन भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्तियां भी हैं। जो कमलासन पर विराजमान है।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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