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________________ भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्तियों का वैशिष्ट्य । ३०९ पर बिखरी हुई हैं चतुर्थ मूर्ति के सिर पर सप्तफणी नाग की छाया है। इनमें से अंतिम दो स्पष्टत: आदिनाथ और पार्श्वनाथ की मूर्तियां हैं।' गुप्तकालीन भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्तियां ___ यह युग ईसा की चौथी शती से प्रारम्भ होता है। गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम के काल में गुप्त सं. १०६ की बनी हुई विदिशा के समीप उदयगिरि की गुफा में उत्कीर्ण पार्श्वनाथ की मूर्ति भी इस काल की मूर्तिकला के लिए ध्यान देने योग्य है। दुर्भाग्यत: मूर्ति खण्डित हो चुकी है तथापि उसके ऊपर का नागफणं अपने भयंकर दांतो से बड़ा प्रभावशाली और अपने देव की रक्षा के लिए तत्पर दिखाई देता है। उत्तर प्रदेश के कहाऊँ नामक स्थान से प्राप्त गुप्त सं. १४१ के लेख सहित वह स्तम्भ भी यहाँ उल्लेखनीय है जिसमें पार्श्वनाथ की तथा अन्य चार तीर्थंकरों की प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं ।१० कलकत्ता के इण्डियन म्यूजियम में भ. पार्श्व की ४ फुट ऊँची प्रतिमा है। संभवत: यह गुप्तकालीन है। ५वी शती की है। . ग्वालियर नगर तेरहवीं शताब्दी में गोपाचल पर्वत के नाम से प्रसिद्ध था। यह क्षेत्र जैन मूर्तिकला एवं स्थापत्य की दृष्टि से पाँचवी शताब्दी का प्रसिद्ध है। यहाँ पर भगवान् पार्श्वनाथ की ४२ फुट ऊँची तथा ३० फुट चौड़ी पद्मासन मुद्रा में विश्व की सबसे विशाल प्रतिमा है। संसार की यह दुर्लभ मनोज्ञ कलाकृति है।१२ . ___ यद्यपि भगवान् पार्श्वनाथ सम्पूर्ण भारतवासियों के प्रिय एवं प्रमुख आराध्य देवता हैं जिनके नाम से स्थान, व्यक्ति, रत्न एवं पत्थर तक जुड़कर गौरवान्वित हुए हैं फिर भी लेख की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए प्रदेशवार कुछ प्रमुख मूर्तियों का परिचय एवं वैशिष्ट्य बताया जा रहा है। उत्तर प्रदेश ... वाराणसी : भगवान् पार्श्वनाथ के लिए उत्तर प्रदेश सर्वाधिक प्रिंय रहा है फलत: उनके गर्भ, जन्म, तप एवं ज्ञान कल्याणक, उपसर्ग एवं
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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