SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ΧΧΧιν तीर्थंकर पार्श्वनाथ स्थानीय श्री सुभाष जी पंकज ने इस संगोष्ठी को चौरासी मंदिर के इतिहास में अभूतपूर्व उपलब्धि बताया। सभान्त में उपध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपना शुभाशीर्वाद देते हुए कहा कि जिनेन्द्र प्रभु की उपेक्षाकर पद्मावती की पूजा शोचनीय है। जैन धर्म वीतरागता पर आधारित है। इसमें पूजा के लिए स्वर्गिक देवी-देवताओं के लिए कहीं कोई स्थान नहीं है। आज जो दिगम्बर मूर्तियों को श्वेताम्बरीय एवं मूर्तियों के शिलालेख बदलवाने की कुचेष्टा कर रहे हैं उनसे सजग रहने की आवश्यकता है। आज कला, संस्कृति एवं साहित्य पर होने वाले कुठाराघात को रोकने की महती आवश्यकता है, ऐसा कर ही हम सच्चे सपूत बन सकते हैं। अन्त में पार्श्वप्रभु की जयध्वनि के साथ सभा को समाप्त किया गया। षष्ठं सत्र दि. २०.१०.९७ (रात्रि) परम पूज्य आध्यात्मिक संत उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में श्री तीर्थंकर पार्श्वनाथ संगोष्ठी का षष्ठ सत्र डा. कमलेश कुमार जैन (वाराणसी.) के द्वारा वीरप्रभु की स्तुति स्वरूप मंगलाचरण के माध्यम से श्री पं. नीरज जैन (सतना) की अध्यक्षता एवं डॉ. फूलचन्द 'प्रेमी' के संयोजकत्व में सम्पन्न हुआ। आलेखवाचन क्रम में डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' (सनावद) ने 'तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्तियों का वैशिष्ट्य' आलेख के माध्यम से तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्तियों के अतिशय से सम्पन्न क्षेत्रों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में विराजित भ. पार्श्व प्रभु की मूर्तियों की जानकारी दी। द्वितीय आलेख डॉ. लाल चन्द जैन ने 'अपभ्रंश साहित्य में भ. पार्श्वनाथ' विषय पर विक्रय सं. 10वीं से 16वीं तक के साहित्य में वर्णित पार्श्वनाथ सम्बन्धी साहित्य को रेखांकित करते हुए पार्श्व के जीवन के विषय में जानकारियां प्रदान की। डॉ. मारुतिनन्दन तिवारी (वाराणसी) ने 'तीर्थंकर पार्श्वनाथ
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy