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तीर्थकर पार्श्वनाथ संयोजकत्व में तीर्थंकर पार्श्वनाथ' संगोष्ठी का पंचम सत्र डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन (सनावद) के द्वारा मंगलाचरण एवं निर्मल जैन द्वारा, दीप प्रज्जवलन के साथ प्रारम्भ हुआ। आलेखवाचन क्रम में सर्वप्रथम डॉ. प्रकाशचन्द जैन (दिल्ली) ने 'संस्कृत साहित्य में भगवान पार्श्वनाथ' विषय पर आलेख प्रस्तुत किया तथा भगवान् पार्श्वनाथ सम्बन्धी संस्कृत काव्यों एवं स्तोत्रों की जानकारी देते हुए तीर्थंकर पार्श्वनाथ के विध पक्षों का उल्लेख किया। द्वितीय वक्ता रूप में पं. उदयचंद जैन (वाराणसी) में 'तीर्थंकर पार्श्वनाथः कुछ विचारणीय बिन्दु' विषयक आलेख के माध्यम से तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वारा नाग नागिन को णमोकार मंत्र सुनाने एवं पद्मावती-धरणेन्द्र द्वारा उपसर्ग दूर कराने तथा फणयुक्त मूर्तियां बनाने का निषेध किया। तृतीय आलेख डॉ. एन. वसुपाल जैन (चेन्नई) 'पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता' विषय पर आंग्लभाषा में प्रस्तुत किया। आपने बताया कि बुद्ध और महावीर के समय भी पार्श्वनाथ तीर्थंकर के अनुयायी थे। अतः उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध है। ___चतुर्थ आलेख डॉ. गोपीलाल अमर (दिल्ली) ने 'तीर्थंकर पार्श्वनाथ
और नाग परम्परा' विषयक आलेख के माध्यम से पार्श्वनाथ सम्बन्धी विविध पक्षों पर प्रकाश डाला। पंचम आलेख पं. नीरज जैन (सतना) ने 'पार्श्वप्रभु की उपसर्गयुक्त प्रतिमाएँ' विषयक आलेख के माध्यम से पार्श्व की इन उपसर्ग युक्त कृतियों की कलात्मक विशेषतायें बतायीं। षष्ठ आलेख श्री अनिल कुमार जैन (अहमदाबादं) ने 'तीर्थंकर पार्श्वनाथ तथा नाग जाति द्वारा नाग जाति' विषयक आलेख के माध्यम से नाग जाति के उद्भव एवं विकास तथा वर्तमान स्वरूप पर प्रकाश डाला। सप्तम आलेख श्री नन्दलाल जैन (रीवा) ने 'पार्वापत्य कथानक के आधार पर भ० पार्श्वनाथ के उपदेश' विषय पर विचारोत्तेजक आलेख प्रस्तुत किया।
अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. प्रेमसुमन जैन (उदयपुर) ने पठित आलेखों पर अपना अध्यक्षीय वक्तव्य दिया तथा कहा कि भगवान् पार्श्वनाथ के ऊपर विस्तृत एवं सटीक पुस्तक प्रकाशित होनी चाहिए।