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- तीर्थंकर पार्श्वनाथ निकलते हैं तो घर से ही पानी पीने के लिए ले जाते हैं और पुनः घर आने पर ही पानी पीते हैं। आज वहां चेतना आयी है जिसे और बढ़ाने की आवश्यकता है। पूज्य उपाध्याय श्री ने सभी पठित आलेखों की प्रशंसा की।
आलेखवाचनक्रम में षष्ठ आलेख डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन (नीमच) . ने 'भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता', प्रस्तुत किया। डॉ. कमलेश कुमार जैन (वाराणसी) ने अपने लेख 'भट्टारक सकलकीर्ति और उनका पार्श्वनाथ चरित्र' के माध्यम से कहा कि मरूभूमि का जीवन अहिंसा संस्कृति एवं कमठ का जीव हिंसा की संस्कृति को प्रतिष्ठित करता है।
अष्टम आलेख में डॉ. फूलचन्द्र प्रेमी ने 'तीर्थंकर पार्श्वनाथ का व्यक्तित्व और प्रभाव' का वाचन कर लोकनायक भ० पार्श्व के चिन्तन का प्रभाव वैदिक तथा बौद्ध साहित्य पर पड़ा, इस बात के प्रमाण दिये।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. मारुतिनन्दन तिवारी (बनारस) ने पठित आलेखों की समीक्षा की और कहा कि इतिहास का उद्घाटन और सत्य का उद्घाटन प्रमाणों पर आधारित होना चाहिए। पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता निर्विवाद है। पार्श्वनाथ की परम्परा तीर्थंकरों की परम्परा में एक नदी की धारा के समान है जो निरन्तर जुड़ती गई। स्वयं को आराध्य के साथ तादात्म्य करना प्रतिमा पूजन का उद्देश्य है। आचरण और व्यवहार में हम पार्श्व के प्रभाव को अंगीकार करें, यही हमारे पार्श्व सम्बन्धी चिन्तन का परिणाम होना चाहिए।
पंचम सत्र - दि० २०.१०.९७ (दोपहर). परम पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज एवं परमपूज्य मुनि श्री वैराग्यसागर जी महाराज के सानिध्य में डॉ. प्रेम सुमन जैन (उदयपुर) की अध्यक्षता एवं डॉ. कमलेश कुमार जैन (वाराणसी) के