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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ xxxi ने 'पार्श्व और सुपार्श्व' विषय पर आंग्ल भाषा में पढ़ा। उन्होंने नाग जाति, पार्श्व प्रतिमाओं पर नाग का फण के विषय में रोचक जानकारी दी। पंचम आलेख डॉ. जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर ने 'पार्श्वनाथ के जीवन से सम्बन्धित कतिपय एवं सम्प्रदाय भेद' आलेख के माध्यम से जन्मतिथि, नामकरण, विवाह, दीक्षातिथि, जन्मकाल आदि के भेद की जानकारी दी। डॉ. जैन ने कहा है प्राचीन श्वेताम्बर साहित्य से स्पष्ट है कि वे पार्श्वनाथ को अविवाहित ही मानते रहे हैं। बहुत बाद में चलकर श्वेताम्बर परम्परा में पार्श्वनाथ के विवाह की बात समाविष्ट की गई। __परमपूज्य उपाध्याय श्री ने अपने शुभाशीर्वचन में कहा कि आज कृष्ण की जन्मभूमि पर कंस की जन्मभूमि का प्रभाव अधिक देखा जा रहा है। सराक जाति में अनेक परिवर्तन व्यवसायगत हो रहे हैं। सराक जाति पहले सम्पन्न थी तथा उनके मांझी उपाधि राजाओं से सम्मान में प्राप्त थी। आज भी उनमें जैनत्व के संस्कार हैं। पुरुलिया जिले के सराक पूर्णत: शाकाहारी हैं। वहां पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार एवं नये मन्दिरों को निर्माण, पाठशालाओं की स्थापना एवं सराकों को रोजगार प्रशिक्षण एवं संम्बन्धित साधन प्रदान किये जा रहे हैं। उपाध्याय श्री ने विद्वानों से इस क्षेत्र में शोध एवं सहयोग का अनुरोध किया। सराकों में अगर बिना स्नान. किये व्यक्ति की छाया पानी पर पड़ जाये तो उस पानी से महिलायें भोजन नहीं बनाती, पुरुष अपना भोजन स्वयं नहीं परोस सकते क्योंकि उनके कपड़े शुद्ध नहीं होते, बिना स्नान किये महिलायें चौका में नहीं जाती, विधवा विवाह एवं विजातीय विवाह उनमें नहीं होते। सराकों ने अपने संस्कार आज भी सुरक्षित रखे हैं। बिहार में भ० महावीर के विचारों का प्रतिपादन एवं पालन आज भी देखा जा सकता है। विवाह के समय सराक पार्श्व प्रभु को याद करते हैं। चरवाह जैसे कार्य करने वाले सराक भी णमोकार मंत्र एवं स्तुतियां जानते हैं। उपाध्याय श्री ने कहा कि विद्वानों द्वारा समाज एवं धर्म की पतित हो रही अवस्था को रोका जा सकता है। आज भी कई सराक बन्धु सराक जब कार्य पर
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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