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माथुरी शिल्प में दुर्लभ पाकिन
२८१ ईसवी का प्रतीत होता है। अस्तु, ऊपर वर्णित सभी स्थानों से पूर्व का है ऐसा अभिमत जैन प्रतिमा विज्ञान के तलस्पर्शी ज्ञाता प्रो. यू.पी. शाह महोदय ने लेखक को बतलाया था।
पार्श्वनाथ प्रतिमा
आसनस्थ पार्श्वनाथ प्रतिमा जिसके मस्तक पर वैष्णव तिलक अंकित है (चित्र २)। इसकी नाक को कुरुपित किया गया है तथा इस प्रतिमा पर कोई भी लेख लिखा गया हो ऐसा निश्चित नहीं होता है क्यों कि प्रतिमा का नीचे का हिस्सा पर्याप्त क्षतिग्रस्त है।
अभिलिखित प्रतिमाएं : आयागपट्ट __जैन कला की ये अपनी ही विशेषता आकर्षक पट्ट आयागपट्ट-होमेज टेबलेट है। इन्हें कला पारखी डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने पद्मपट्ट, चक्रपट एवं स्वस्तिक पट्ट कहा है। आयागपट्ट पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार इन्हें आयागपट्ट या शिलापट्ट भी पाते हैं। एक उल्लेखनीय आयागपट्ट" है जिसके मध्य भाग में चार तिलक रत्न' या नन्दीपाद के बीच वृत्त में सप्त फणों के नीचे ध्यानलीन पार्श्व और प्रत्येक ओर वस्त्र रहित उपासक दोनों ओर नमस्कार मुद्रा में खड़े हैं (चित्र ३)। नीचे लेख उत्कीर्ण है जिससे ज्ञात होता है शिवघोषा ने इसे स्थापित करवाया था, लेख काफी नष्ट हो चुका है। इतिहासकार स्मिथ महोदय ने इस पट पर अभिलिखित लेख को लिपि के आधार पर पूर्व कुषाण लिपि माना है। कला एवं लिपि दोनों ही दृष्टियों से प्रथम शती ईसा पूर्व के पूर्वार्द्ध का यह अंकन सिद्ध होता है। अर्थात् माथुरी शिल्प में भगवान् पार्श्वनाथ का यह शुगंयुगीन अंकन प्रतीत होता है।
. पार्श्व का हुविष्क कालीन अंकन
लाल चित्तीदार पत्थर पर पार्श्व की ध्यानमग्न बैठी मूर्ति है" (चित्र ४)। इस प्रतिमा पर पार्श्वनाथ का नाम तो नहीं है किन्तु अभिलिखित लेख