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________________ २७६ तीर्थंकर पार्श्वनाथ चित्रांकन है साथ ही सर्पो की फणावलियां भी हैं। अधिकांश शैलकला स्थल दूर दराज के वीहड़ों व दुर्गम क्षेत्रों में होते हैं कला की परिधि से बाहर जाकर रची गई। पुरातन शैलकला को पूर्णत: समझ पाना यद्यपि अभीतक संभव नहीं हो पाया है, यह सर्वमान्य अनुमान है कि इसके अर्थ काफी व्यापक रहे होंगे। शैलकला दर्शन आनंद के साथ-साथ बौद्धिक चुनौतियां भी देते हैं। शैलकला चित्र सिर्फ एक रेखांकन के रूप में और बहुत धूमिल मिलते हैं इनके पास तक पहुंचना और इनकी खोज करना बहुत टेढ़ा काम है। इनके फोटोग्राफ लेना भी दुष्कर है साधारण कैमरा और फ्लैश से इनके फोटो नहीं लिए जा सकते। कुछ शैलचित्र लैमिनैटेड़ भी मिलते हैं जिनसे चमक आती है इसलिए फोटो नहीं लिए जा सकते। अंधेरी शैल गुफाओं में : प्रवेश करना भी खतरे से खाली नहीं होता, जहरीले जीव जन्तु, हिंसक जानवरों का भी भय सदैव रहता है। पभोषागिरि पर जो शैल चित्र हैं। उनमें सर्प फणावलियों वाले देवता के चित्र भी हैं यहां पहुंचने के लिए ग्वालों के पुत्रों के साथ जाना संभव हुआ था। इन गुफाओं में हड्डियों के ढेर भी मिले हिंसक जानवरों की आवाजें भी सुनाई दीं। इस अभियान में डॉ. फूल चन्द प्रेमी भी मेरे साथ कुछ स्थलों पर गए थे। शिवपुरी नेशनल पार्क में चुडैल की छाज एक जगह है यहां ५ पैनल शैलकला चित्रों के हैं। एक स्थान पर भूरा खो है यहां भगवान् पार्श्वनाथ के काले और नीले शैल चित्र मिलते हैं जो मैंने ५ वर्ष पूर्व देखे थे। इन चित्रों के पास 'दुवकेन कारति' प्राकृत शब्द लिखे हैं जो संभवत: चित्रकार के हस्ताक्षर हैं। शैल चित्रों का काल निर्धारण अधिकतर सापेक्षिक विधियों से किया गया है जिनमें सतहों का अध्ययन मुख्य आधार होता है। उसी शैलाश्रय से सांस्कृतिक अवशेषों का जमीन में जमाव जब खुदाई द्वारा बाहर निकाला जाता है तो अवश्य ऐसे संकेत मिलते हैं जिनका संबन्ध शैल चित्रों से जोड़ा जा सकता है लेकिन तब भी सुस्पष्टता के अभाव में यह संभव नहीं होता
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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