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शैल चित्रकला संपदा और भ. पार्श्वनाथ
कि सीधा सटीक काल निर्धारण किया जा सके। जहां मैं इन चित्रों को पार्श्वनाथ भगवान् से जोड़ रहा हूँ संभव है ये चित्र सुपार्श्वनाथ के हों इससे इन चित्रों की परंपरा और अधिक पुरानी चली जाती है ।
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गोपाचल पर्वत एक पत्थर की बावड़ी पर स्थित ४२ फुट पद्मासन मूर्ति जिसे पार्श्वनाथ की मूर्ति कहा जाता है वस्तुतः सुपार्श्वनाथ जी की है जो तोमरं शासक डूंगरसिंह ने १४००वीं शताब्दी में बनवाई थी ।
ग्वालियर के पास मोहना कस्बा भी है यहां ताम्र पाषाण के शैलचित्र उपलब्ध हुए हैं। अधिकांशतः शैलचित्र एक दूसरे पर अंकित पाए जाते हैं। इस तरह चित्रों की कई सतहें और प्रत्येक सतह में किसी खास समय बनाए गए चित्र होने की संभावना स्पष्टत: बनती है । प्रत्येक सतह के चित्र अलग अलग निकालकर देखने पर उनका अध्ययन सुविधाजनक होता है । शैलकला के अध्येता शैलाश्रयों में जाकर चित्रों की ट्रेसिंग इस तरह करते हैं कि सतहों को अलग अलग किया जासके ।
स्व. पद्मश्री डॉ. वाकनकर उज्जैन ने इस क्षेत्र में गहन सर्वेक्षण किया • है। उनके व्यक्तिगत म्यूजियम में ऐसे शैलचित्रों के फोटोग्राफ देखे जा सकते • हैं ।
इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय में २२ शैलाश्रय मूलरूप में सुरक्षित हैं। जिनकी अभी वर्तमान में खोज की गई है। अब सबसे बड़ा काम जैन शैलाश्रयों को संरक्षित करने का है। लगातार पत्थरों की कटाई से इनके समाप्त होने की पूरी-पूरी संभावना है। इनका सूचीकरण भी आवश्यक है । एक नयी सूचना के आधार पर पता चला है कि कम्बोडिया या थाईलैण्ड में भी ऐसे चित्र मिले हैं जो जैन सुपार्श्व / पार्श्वनाथ से साम्यता रखते हैं । मीजोल नामक स्थान पर इन्हें खोजा गया है।