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तीर्थकर पार्श्वनाथ मेघशाली य शम्बर द्वारा उपस्थित उपसर्गों की विस्तृत कथा श्वेताम्बर एवं दिगम्बर ग्रन्थों में लगभग आठवीं-नवीं शती ई. से मिलने लगती है और इस कथा की पृष्ठभूमि में ही मूर्तियों में उपसर्गों का विस्तृत अंकन हुआ। उल्लेखनीय है कि केवल दिगम्बर स्थलों की पार्श्वनाथ की मूर्तियों में ही शम्बर के उपसर्गों का अंकन मिलता है। श्वेताम्बर स्थलों पर केवल कुम्भारिया (बनासकांठा, गुजरात) के शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों (११वी शती ई.) के वितानों पर उत्कीर्ण पार्श्वनाथ के जीवनचरित के शिल्पांकन के प्रसंग में ही पंचकल्याणकों के साथ उपसर्गों का भी विस्तृत शिल्पांकन हुआ है।
ग्रन्थों में शम्बर के उपसर्गों के प्रसंग में ही नागराज धरणेन्द्र और पद्मावती की उपस्थिति का सन्दर्भ मिलता है। कथाओं में पूर्वभवों के उपसर्गों के साथ ही १०वें भव में पार्श्वनाथ की तपस्या में शम्बर द्वारा उपस्थित किये गये विकट उपसर्गों का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार शम्बर ने वज्र, शिलाखण्ड एवं अन्य सांघातिक अस्त्रों (बाण, शूल, मुद्गर, परशु) से पार्श्वनाथ पर प्रहार करने के साथ ही शार्दूल, कपि, श्वान्, सर्प, शूकर, महिष, गज, वृषभ जैसे पशुओं तथा वैताल, पिशाच, डाकिनी के माध्यम से भी उनके ध्यान को भंग करने का असफल यत्न किया था। अन्तत: शम्बर ने भीषण वर्षा के जल में पार्श्वनाथ को डुबो देने का यत्न किया और उसी क्रम में वर्षा के जल के कन्धों के ऊपर या नासाग्र तक पहुंचने पर देवलोक से नागराज धरणेन्द्र अपनी शक्ति पदमावती सहित उपस्थित हुए और पार्श्वनाथ को सर्प की कुण्डलियों पर उठाकर सिर पर सात सर्पफणों की छाया कर दी। पद्मावती ने उसके ऊपर वज्रमय छत्र की छाया कर दी। इस कथा की पृष्ठभूमि में ही मूर्तियों में धरणेन्द्र और छत्रधारिणी पद्मावती का अंकन हुआ। अन्तत: कमठ (शम्बर) ने भी पराजय स्वीकार कर क्षमायाचना की जिसे एलोरा की मूर्तियों में दिखाया गया है। एलोरा की मूर्तियों में शम्बर के उपसर्गों का सर्वाधिक जीवन्त और विस्तृत अंकन हुआ है। एलोरा में अन्य स्थलों से अलग धरणेन्द्र की मानवाकृति के स्थान पर सर्प के रूप में ही उपस्थिति दरशायी गयी है,