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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्तियां : लक्षण और वैशिष्ट्य २६९ सर्पफणों के छत्र वाली चतुर्भजा पद्मावती परम्परानुरुप कुक्कुट-सर्प पर आरूढ़ हैं और करों में पद्म, पाश, अंकुश एवं फल से युक्त हैं ।१२ श्वेताम्बर स्थलों की कुछ पार्श्वनाथ मूर्तियों में सर्वानुभूति एवं अम्बिका के सिरों पर भी सर्पफणों का छत्र दिखाया गया है। ___ खुजराहो, देवगढ़ एवं उत्तर भारत के अन्य दिगम्बर स्थलों पर पार्श्वनाथ के साथ सात सर्पफणों के छत्र का प्रदर्शन नियमित था। पार्श्ववर्ती चामरधारी या हाथ जोड़े धरणेन्द्र एवं छत्रधारिणी पद्मावती का नियमित और सर्पफणों के छत्र सहित रूपायन हुआ है। इनके साथ ही सिंहासन छोरों पर द्विभुज या चतुर्भुज धरणेन्द्र-पद्मावती का भी अंकन हुआ है। मध्यकालीन पार्श्वनाथ की मूर्तियों में परिकर में महाविद्याओं, नवग्रहों एवं सरस्वती की लघु आकृतियां भी उकेरी गई। - पार्श्वनाथ की तपश्चर्या में उपस्थित उपसर्गों के शिल्पांकन की दृष्टि से एलोरा की मूर्तियां (९वी-१०वी शती ई.) अतिमहत्वपूर्ण हैं। इस स्थल पर पार्श्वनाथ की कुल ३१ मूर्तियां हैं, जिनमें से नौ उदाहरणों में पार्श्वनाथ ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं। अन्य सभी उदाहरणों (२२) में पार्श्वनाथ 'निर्वस्त्र और कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं। अधिकांशत: पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तियों में मेघमाली (शम्बर) के उपसर्गों का विस्तृत अंकन हुआ है. और ये मूर्तियां सामान्यत: मण्डपों में प्रतिष्ठित हैं जिसके ठीक सामने मण्डपों में गोम्मटेश्वर बाहुबली की तपस्यारत कायोत्सर्ग मूर्तियां उकेरी हैं। गहन साधना की प्रतीक पार्श्वनाथ और बाहुबली दोनों की मूर्तियों का आमने-सामने अंकन भी एक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। गुफा संख्या ३२ में ही अकेले १२ मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। स्मरणीय है कि पार्श्वनाथ की मूर्तियो में उपसर्गों का अंकन सर्वप्रथम बादामी और अयहोल (लगभग ६०० ई.) की मूर्तियों में हुआ है। मालादेवी मन्दिर (ग्यारसपुर, मध्य प्रदेश), भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता एवं हुम्या (शिभोगा, कर्नाटक) के कुछ अन्य उदाहरणों में ही पार्श्वनाथ मूर्तियों में उपसर्गों का अंकन हुआ है। - मरुभूति (१०वें भव में तीर्थकर पार्श्वनाथ) के प्रति कमठ (मेघमाली या शम्बर) के पूर्व जन्मों के वैर भाव के कारण पार्श्वनाथ की तपश्चर्या में
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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