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तीर्थकर पार्श्वनाथ की मूर्तियां : लक्षण और वैशिष्ट्य
२६७ हैं। चौसा की मूतियों में पार्श्वनाथ (पटना संग्रहालय, क्रमांक ६५३१, ६५३३) कायोत्सर्ग में खड़े हैं। जिन चौमुखी या सर्वतोभद्र प्रतिमाओं की कायोत्सर्ग मूर्तियों के अतिरिक्त मथुरा की अधिकांश कुषाण मूर्तियों में सम्प्रति पार्श्वनाथ के केवल मस्तक और उनपर प्रदर्शित सात सर्पफणों के छत्र ही सुरक्षित हैं। राज्य संग्रहालय, लखनऊ में पार्श्वनाथ की तीन ध्यानस्थ मूर्तियां भी संग्रहीत हैं । कुषाण कालीन उदाहरणों में पार्श्वनाथ के मस्तक पर प्रदर्शित सर्पफणों को स्वस्तिक, धर्मचक्र त्रिरत्न, श्रीवत्स, कलश, मत्स्य युगल और पद्म जैसे मांगलिक चिन्हों से शोभित दिखाया गया है।
गुप्तकाल (४००-५५० ई.) में पार्श्वनाथ की मूर्तियों में अष्ट-प्रातिहार्यों का अंकन भी प्रारम्भ हो गया । अकोटा (बड़ौदा, गुजरात) की छठी-सातवी शती ई. की मैत्रक मूर्तियों में पार्श्वनाथ के साथ यक्ष-यक्षी का निरूपण भी प्रारम्भ हुआ, किन्तु पारम्परिक यक्ष-यक्षी (धरणेन्द्र-पद्मावती) के स्थान पर इनमें नेमिनाथ के सर्वानुभूति (या कुबेर) और अम्बिका रूपायित हैं। यहां उल्लेखनीय है कि गुजरात-राजस्थान की परवर्ती मूर्तियों (सातवी-१३वी शती ई.) में भी पार्श्वनाथ के साथ सामान्यत: सर्वानुभूति और अम्बिका ही निरूपित हैं। पार्श्वनाथ के अतिरिक्त अन्य तीर्थंकरों के साथ भी श्वेताम्बर स्थलों पर यही यक्ष-यक्षी आमूर्तित हुए हैं। पार्श्वनाथ की गुप्तकालीन मूर्तियों के उदाहरण मुख्यत: मथुरा (राज्य संग्रहालय, लखनऊ क्रमांक १००, पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा, क्रमांक १८.१५०५), उदयगिरि (गुफा २०-पांचवी शती ई.), एवं नयना (पन्ना, मध्यप्रदेश) से मिले हैं। सातवीं शती ई. की मूर्तियां अकोटा (दिल्ली), बादामी (गुफा ४) एवं अयहोल (बीजापुर, कर्नाटक) से प्राप्त हुई है। बादामी एवं अयहोल की मूर्तियों में पार्श्वनाथ की तपश्चर्या के समय उपस्थित किये गये मेघमाली या शम्बर (पूर्वभव के बैरी कमठ) के उपसर्गों का अंकन प्रारम्भ हुआ जिसका सर्वाधिक विस्तृत उत्कीर्णन एलोरा की जैन गुफाओं (सं. ३०-३४) की नवीं से १०वीं शती ई. के मध्य की पार्श्वनाथ की मूर्तियों में हुआ है।
लगभग चौथी-पांचवी शती ई. की एक कायोत्सर्ग मूर्ति (राज्य संग्रहालय, लखनऊ क्रमांक जे १००) में पार्श्वनाथ निर्वस्त्र हैं और उनके