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________________ २६६ ___ तीर्थंकर पार्श्वनाथ शुंग-कुषाण काल से ही पार्श्वनाथ की मूर्तियों में हमें शीर्ष भाग में सर्पफणों का छत्र मिलता है। साथ ही नागराज धरणेन्द्र उनके यक्ष और नागदेवी पद्मावती उनकी यक्षी के रूप में निरूपित है। इस प्रकार पार्श्वनाथ के साथ नाग का सम्बन्ध लोक परम्परा में नाग पूजन की मान्यता और जैन धर्म में उसकी स्वीकृति का संकेत देता है। साथ ही पार्श्वनाथ का शिव की नगरी वाराणसी या काशी में जन्म और यहीं कैवल्य की प्राप्ति. तथा शिव के साथ नागों का अभिन्न सम्बन्ध भी इस सन्दर्भ में विचारणीय है। यह मात्र संयोग नहीं है कि सर्पफणों के छत्र से सम्बद्ध सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का जन्म और कैवल्य स्थल भी वाराणसी ही था। ___ पार्श्वनाथ की प्राचीनतम मूर्ति प्रथम शती ई. पू. की है और कंकाली टीला मथुरा से प्राप्त जैन आयाग पट पर उकेरी है जिसकी. स्थापना शिवघोषक की पत्नी ने करायी थी। सात सर्पफणों के छत्र से शोभित पार्श्वनाथ ध्यान-मुद्रा में विराजमान हैं। यह मूर्ति राज्य संग्रहालय लखनऊ (क्रमांक जे. २५३) में सुरक्षित है। लगभग पहली शती ई.पू. के अन्तिम चरण या पहली शती ई. की पार्श्वनाथ की दो अन्य स्वतन्त्र मूर्तियां क्रमश: चौसा (भोजपुर, बिहार) एवं प्रिंस ऑव वेल्स संग्रहालय, बम्बई से मिली हैं, जिनमें सात के स्थान पर पांच सर्प फणों का छत्र दिखाया गया है। दोनों उदाहरणों में निर्वस्त्र पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं। उल्लेखनीय है कि बादामी (गुफा ४) और अयहोल (जैन गुफा) की लगभग प्रारम्भिक सातवीं शती की मूर्तियों में भी पांच सर्पफणों के छत्र वाले पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि लगभग सातवीं शती ई. तक पार्श्वनाथ के साथ पांच और सात दोनों ही सर्पफणों के छत्रों के अंकन की परम्परा प्रचलित थी और लगभग आठवीं-नवीं शती में जिनों के लांछनों-लक्षणों के निर्धारण के बाद ही पांच सर्पफणों का छत्र केवल तीर्थकर सुपार्श्वनाथ के साथ दिखाया गया । कुषाण काल में ऋषभनाथ के बाद पार्श्वनाथ की ही सर्वाधिक मूर्तियां उत्कीर्ण हुई। वक्षस्थल में श्रीवत्स चिन्हित ये मूर्तियां मथुरा और चौसा से मिली हैं। इनमें सात सर्पफणों के छत्र से शोभित पार्श्वनाथ सर्वदा निर्वस्त्र
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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