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________________ २६४ तीर्थंकर पार्श्वनाथ ऐतिहासिकता एवं तत्कालीन लोकप्रियता को जन-जन तक पहुँचाने का गुरुकार्य किया। बौद्ध ग्रन्थों में आख्यायित चातुर्याम एवं उसे निर्ग्रन्थ नातपुत्र का धर्म बताने का सम्बन्ध भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा से है। सम्भव है कि भगवान् पार्श्वनाथ की असीम लोकप्रियता ने समकालीन रचनाधर्मियों को अपने-अपने सर्जनात्मक माध्यमों में पार्श्वनाथ को प्रतीक रूप में प्रतिष्ठित करने के लिये अभिप्रेरित किया हो। इस कथ्य के समर्थन में हम जिनसेन कृत काव्य पार्वाभ्युदय को परिगणित कर सकते हैं जिसका रचना काल नवीं शती का है। आगामी शती में वादिराज ने पार्श्वनाथ चरित की रचना की। तदनन्तर तेरहवीं तथा चौदहवीं शती में माणिक्यचन्द्र और भाव देव सूरि ने भी भगवान् पार्श्वनाथ को केन्द्रित कर चरित काव्य लिखे। पन्द्रहवीं शती में सकलकीर्ति ने तथा सोलहवीं शती में पद्मसुन्दर, हेमविजय तथा चन्द्रकीर्ति ने अपनी रचनाएँ लिखीं। पद्म माध्यम की सरसता एवं सम्प्रेषणीयता के बावजूद, सम्भव है कि अपना अलग स्थान निर्मित करने के उद्देश्य से उदयवीर गणी ने गद्य की विद्या को अपना माध्यम बनाया और पार्श्वनाथ चरित्र की रचना की। भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति में भी विभिन्न स्थानों पर पार्खापत्यों का विस्तृत विवरण मिलता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान् पार्श्वनाथ महावीर पूर्व काल में सिर्फ आराध्य देव ही नहीं थे, पाषाण-उत्कीर्ण माध्यम की प्रस्तुति नहीं थे. प्रत्युत् रचनाधर्मी संसार के सब से अधिक स्वीकार्य प्रतीक थे। उनका चातुर्याम धर्म तत्कालीन समाज को प्रभावित कर रहा था और इस प्रभाव का विकास महावीर ने महाव्रतों के माध्यम से किया। यह अत्युक्ति नहीं होगी यदि हम कहें कि बौद्ध धर्म के वर्चस्व एवं उसे प्राप्त राज्याश्रय के बीच भगवान् पार्श्वनाथ के सिद्धान्तों को, उनकी अवधारणाओं को यदि भारतीय समाज अक्षुण्ण रख सका तो इस बात का श्रेय उस कालजयी की उपसर्गों के बीच साधना के प्रयोगों को उत्कर्ष तक पहुँचाने की प्रतिबद्धता और मानवीय इयत्ता के प्रति सम्पूर्ण करुणा को वितीर्ण करने वाली दृष्टि को दिया जा सकता है। यही कारण है कि आज महावीर के शासन काल में भी भगवान् पार्श्वनाथ की लोकप्रियता अक्षुण्ण रही है। .
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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