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________________ एक जननायक तीर्थंकर : भगवान् पार्श्वनाथ २६३ ओर बाहुबली, जो दक्षिण भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय आराध्य-देव हैं। इसी प्रकार ऐहोल की गुफाओं में बायीं दीवाल पर पार्श्वनाथ की मूर्ति उत्कीर्ण है जिसके एक ओर नाग एवं दूसरी ओर नागिन स्थित है। दाहिनी ओर चैत्य वृक्ष के नीचे जिनमूर्ति बनी है। इस गुफा की सहस्त्रं फण युक्त भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा कला की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ____ एलोरा की गुफाओं में भी इन्द्रसभा की एक बाहरी दीवाल पर पार्श्वनाथ की तपस्या एवं कमठ उपसर्ग का बहुत सुन्दर एवं सजीव उत्कीर्णन किया गया है। पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानस्थ हैं, ऊपर सप्तफणी नाग की छाया है व एक नागिनी छत्र किये है। दो अन्य नागिनी भक्ति, आश्चर्य व दु:ख की मुद्राओं में उत्कीर्णित हैं। एक ओर भैंसे पर सवार असुर रौद्र मुद्रा में शस्त्रास्त्रों सहित आक्रमण कर रहा है व दूसरी ओर सिंह पर सवार कमठ की रुद्र मूर्ति आघात करने के लिये उद्यत है। नीचे की ओर भक्तगण हाथ जोड़ कर खड़े हैं। . __लगभग पन्द्रहवीं शताब्दी की ग्वालियर की जैन गुफाओं में बावड़ी के समीप. भगवान् पार्श्वनाथ की लगभग बीस फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति विराजमान है। यद्यपि कला के दृष्टिकोण से ये गुफाएं उतनी महत्वपूर्ण नहीं पर इतिहास के दृष्टिकोण से इनका महत्व है। और तीर्थंकर पार्श्वनाथ की लोकप्रियता को सिद्ध करती है। - प्रयाग तथा कौशाम्बी के समीप पभोसा नामक स्थान पर दो शुंग कालीन लिपि को प्रदर्शित करती ई.पू. द्वितीय शती की गुफाएँ हैं। इन लेखों से स्पष्ट होता है कि ये गुफाएँ पार्श्व सम्प्रदाय के अनुयायियों को दान में दी गयी थीं। इस लेख के कथ्य से इस बात के पर्याप्त संकेत मिलते हैं कि पार्श्व सम्प्रदाय के अनुयायियों का शासन पर दबदबा था एवं उन्हें राजकीय सम्मान तथा संरक्षण प्राप्त था। ___ हमें श्रेय देना चाहिये सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान हर्मन याकोबी को जिन्होंने जैन एवं बौद्ध साहित्य के सूक्ष्म अध्ययन द्वारा महावीर के पूर्व निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के अस्तित्व को सिद्ध किया और भगवान् पार्श्वनाथ की
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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