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________________ तीर्थकर पार्श्वनाथ xxix द्वारा तीर्थंकर पार्श्वनाथ भक्ति गंगा के आलोक में भगवान् पार्श्वनाथ विषय पर आलेख पढ़कर भ. पार्श्व के जीवन, कृतित्व से परिचित कराते हुए तीर्थंकर पार्श्वनाथ के नाम पर हो रही मिथ्या मान्यताओं के खण्डन सम्बन्धी भक्त कवियों के विचारों का उल्लेख किया। अनन्तर डॉ. अभयप्रकाश जैन (ग्वालियर) ने 'रॉक आर्ट पेंटिंग्स एण्ड लार्ड पार्श्वनाथ' विषय पर आलेख पढ़ते हुए विभिन्न शैल एवं भित्ति चित्रों में जैन संरचनाओं के बारे में बताया। तत्पश्चात् डॉ. अशोक कुमार (लाडनूं) ने ती. पार्श्वनाथ का लोक व्यापी प्रभावी विषयक आलेख द्वारा बताया कि आज भी बिहार, बंगाल, वं उत्तर प्रदेश की पर्वतीय जातियों में भ. पार्श्वनाथ के प्रति आस्था पायी जाती है साथ ही वैदिक, बौद्ध एवं जैन आगमों में उनका उल्लेख आया है, इससे तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लोकव्यापी प्रभाव दिखायी देता है। अनन्तर डॉ. कपूरचन्द जैन (खतौली) ने 'जैन स्तोत्र साहित्य एवं तीर्थंकर. पार्श्वनाथ' विषय पर आलेखपाठ के माध्यम से बताया कि पार्श्वनाथ एक ऐसे तीर्थंकर हैं जिन्हें पहले भी लोकदेवता माना जाता था और आज भी लोकदेवता माना जाता है। सत्र के अन्तिम आलेख वाचक के रूप में आये डॉ. सत्यप्रकाश जैन (दिल्ली) ने 'हिन्दी जैन कथा साहित्य में भ० पार्श्वनाथ' विषय पर आलेख पाठ करते हुए बताया कि अधिकांश हिन्दी जैन कथा साहित्य संस्कृत प्राकृत व अपभ्रंश भाषा के साहित्य से अनूदित है। - अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में पं0 उदयचन्द जैन (वाराणसी) ने पठित आलेखों की समीक्षा की एवं महत्वपूर्ण सुझाव दिये। उन्होंने कहा कि सभी तीर्थंकरों के मूल सिद्धान्तों में कोई अन्तर नहीं है। बुद्ध के जैन धर्म में दीक्षित होने के प्रमाणों की खोज की जानी चाहिए। नवग्रह विधान की कल्पना निरर्थक है। उन्हें किसी तीर्थंकर विशेष से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। . अन्त में सत्रसंयोजक डॉ. सुरेशचन्द जैन (वाराणसी) ने आभार व्यक्त किया।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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