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________________ २४ तीर्थंकर पार्श्वनाथ १८. मोक्ष पाने पर श्वेताम्बर मतानुसार निर्वाणस्थलपर देवेन्द्र द्वारा रत्न-जटित स्तूप बनाया गया था। ऐसा कोई उल्लेख दिगम्बर जैन शास्त्रों में नहीं है। १९. कल्पसूत्र में गर्भ तिथि चैत्र कृष्णा ४ समय अर्धरात्रि है। दिगम्बर शास्त्र में यह वैशाख कृष्ण २ समय अर्ध रात्रि है। जन्म तिथि भी क्रमश: पौष कृष्ण १० और पौषकृष्ण ११ है। ... २०. पालकी के नाम क्रमश: कल्पसूत्र में विशाला' और दिगम्बर शास्त्र में 'विमला' है। . २१. दीक्षा समय - दिगम्बर शास्त्र भगवान् को दिगम्बर मुनि हुआ बतलाते हैं, किन्तु श्वेताम्बर शास्त्र उन्हें देव दूष्य वस्त्र धारण करते हुए लिखते हैं जो उनकी सर्वोच्च दशा में नग्नता होनी चाहिए। वैदिक काल के. जैन यति या ज्येष्ठ व्रात्य नग्न होते थे। २२. दिगम्बर शास्त्र भगवान् की छद्मवस्था ४ मास और केवलज्ञान प्राप्ति की तिथि चैत्रकृष्ण १४ कहते हैं। श्वेताम्बर यह अवधि ८३ दिन और उक्त तिथि चैत्रकृष्ण ४ कहते हैं। २३. दिगम्बरानुसार भगवान् १. माह का योगसाधन कर श्रावण सुदि ७ को ३६ मुनीश्वरों सहित मुक्त हुए थे। कल्पसूत्र में उन्हें श्रावण शुक्ल ८ को ८३ व्यक्तियों सहित निर्वाण पद पाते लिखा है। इत्यादि रूप उपरोक्त अन्तर बेताल पंच विशंतिका में भी दृष्टिगत है। जैसी दो जीवों के दश भवों तक शत्रुता चली आई, ऐसी अनेक कथाएं भारतीय साहित्य में उपलब्ध हैं यथा ब्रह्मदत्त कथा में चित्त और सम्भूत की कथा। सन्तकुमार की कथा (कथाकोष) भी इसी प्रकार की है। इसी प्रकार प्रद्युम्नसूरि की समरादित्य कथा में राजकुमार गुणसेन और ब्राह्मण अग्निशर्मा की परस्पर शत्रुता दिग्दर्शित की गयी है। बौद्धों के धम्म पद (२९१) में भी ऐसी ही कथा है। कथाकोष में ऐसी शत्रुता दो ब्राह्मण भाई के मध्य पांच भवों तक आई है। वस्तुत: श्री पार्श्वनाथ से से बढ़कर कोई
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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