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________________ प्रथमानुयोग में तीर्थंकर पार्श्वनाथ २२३ उनके अनुसार इन्द्र ने भगवान् का चमकता हुआ पार्श्व नतं द्ध ‘देखकर उनका नाम पार्श्व रखा था। १२. दिगम्बर शास्त्र उनके विवाह की वार्ता से सहमत नहीं है। १३. श्वेताम्बर शास्त्र में कमठ के जीव को नर्क से निकालकर रोर नामक ब्राह्मण का कठ नामक पुत्र होते बतलाया है, किन्तु दिगम्बर शास्त्र में नर्क से निकलकर संसार में किंचित् रुलकर महीपालपुर का राजा महीपाल बतलाया है, जो भगवान् पार्श्वनाथ का इस भव में नाना था। . १४. अंत में दोनों सम्प्रदायों के शास्त्र कमठ के जीव को पंचाग्नि तपता हुआ साधु और उससे भगवान् पार्श्व का समागम बतलाते हैं। श्वेताम्बर शास्त्र सर्प को पाताल लोक में धारण नामक राजा और कमठ जीव को. मेघमालिन असुर होता लिखते हैं। दिगम्बर शास्त्र सर्प को धरणेन्द्र और कमठ जीव को शंबर नामक ज्योतिषी देव हुआ बतलाते हैं। १५. दोनों पार्श्वनाथ को ३० वर्ष की अवस्था में दीक्षा बतलाते हैं किन्तु श्वेताम्बर मत में दीक्षा वृक्ष अशोक है, दिगम्बर में बड़ का वृक्ष । दीक्षा - देने का कारण भी दोनों में भिन्न है। १६. दिगम्बर मत में छद्मावस्था में उन्हें मौन धारण किये बतलाते हैं किंतु श्वेताम्बर मत में आचारांग सूत्र से बाधित उन्हें भावदेव सूरि ने • उपदेश देते लिखा है। १७. तत्पश्चात् श्वेताम्बर मत असुर द्वारा भगवान् पर उपसर्ग हुआ बतलाते हैं जो अंत में उनकी शरण में आया कहते हैं। किन्तु दिगम्बर शास्त्र उसे समोशरण में सम्यक्त्व की प्राप्ति बतलाते हैं। उपसर्ग होने के बाद श्वेताम्बर उन्हें काशी पहुंचना बतलाते हैं जब कि दिगम्बर यह घटना स्वयं काशी में हुई बतलाते हैं।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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