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________________ २२२ तीर्थकर पार्श्वनाथ दिगम्बर शास्त्रों में जन्म स्थान अपर विदेह के पद्मदेश का अश्वपुर और उनकी माता व पाली के नाम क्रमश: विजया और शुभद्रा बतलाते हैं। ७. श्वेताम्बर शास्त्र कुरंगक भील को ज्वलन पर्वत में रहते बतलाते हैं। दिगम्बर शास्त्रों में ज्वलन पर्वत का कोई उल्लेख नहीं है। वज्रनाभि की कुरंगभील द्वारा मृत्यु हुई बतलाकर श्वेताम्बर अनुश्रुति उसे ललितांग स्वर्ग में देव होते और वहां से चयंकर सुरपुर के राजा वज्रबाहु की पत्नी सुदर्शना के गर्भ में आते लिखते हैं। इनकी कोख से जन्म पाकर वह उसे स्वर्गबाहु नामक चक्रवर्ती राजा होते लिखते हैं, किन्तु दिगम्बर शास्त्रों में वज्रनाभि को चक्रवर्ती बतलाया गया है। दिगम्बर शास्त्रानुसार मरुभूति का जीव मध्यम ग्रैवेयिक से चयकर आनन्द नामक महामण्डलीक राजा हुआ। श्वेताम्बर शास्त्र यह अतिरिक्त कहते हैं कि उसका नाम स्वर्णबाहूं था जिसने पद्मा हरण कर शंकुतला नाटक जैसा. परिणय किया था। इसके स्थान पर दिगम्बर शास्त्र आनन्द राजा को पूजा करते और उनके सूर्यविमानस्थ मंदिरों की पूजा करने से 'सूर्य पूजा' का प्रारंभ मानते हैं। १०. दिगम्बर शास्त्रानुसार आनन्द के मुमि होने पर कमठ के जीव सिंह ने उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी थी जिससे वह आनत स्वर्ग में देव हुए। श्वेताम्बरानुसार स्वर्णबाहु के मुनि होने और सिंह द्वारा मारे जाने को स्वीकार करते हैं किन्तु उन्हें महाप्रभा विमान में देव होते लिखते हैं। ११. यहां से चयकर यह जीव इक्ष्वाकुवंशी राजा अश्वसेन और रानी वामा के यहां बनारस में श्री पार्श्व नामक राजकुमार होते हैं, यह बात दोनों सम्प्रदाय स्वीकार करते हैं। किन्तु श्वेताम्बर शास्त्र में श्री पार्श्व नाम पड़ने का कारण यह बतलाते हैं कि उनकी माता ने अपने (पांव) में एक सर्प को देखा था, जो दिगम्बर शास्त्रों के कथन से प्रतिकूल है -
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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