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________________ प्रथमानुयोग में तीर्थकर पार्श्वनाथ २२१ १. भावदेव सूरिकृत पार्श्वचरित में, पहले मरुभूति भव में विश्वभूति के साधु को स्वर्गवासी होने पर कमठ और मरुभूति को विशेष शोक करते और हरिश्चन्द्र नामक साधु से प्रतिबोधित होने का जो उल्लेख किया है वह दिगम्बर शास्त्रों में नहीं है। २. उन्होंने मरुभूति की स्त्री वसुन्धरा को काम से जर्जरित और कमठ के साथ उसके गुप्त प्रेम को मरुभूति का भेष बदलकर जान लेने तथा राजा से उसे दंडित कराने, इत्यादि बातें कही हैं जो दिगम्बर शास्त्रों में नहीं हैं। ३. दिगम्बर शास्त्रों में राजा. अरविन्द और मरुभूति के एक संग्राम पर जाने का विशेष उल्लेख है। राजा अरविन्द के मुनि हो जाने पर श्वेताम्बराचार्य इन्हें सागरदत्त श्रेष्ठी आदि को जैन धर्मी बनाते और उनके साथ जाते हुये हाथी का उनपर आक्रमण करते लिखते हैं। पर दिगम्बर शास्त्र तीर्थ यात्रा पर जाने का उल्लेख करते हैं। ४. दिगम्बर शास्त्र अग्निवेग का जन्म स्थान पुष्कलावती देश का . लोकोत्तरपुर नगर और उसकी माता का नाम विद्युत्माला बतलाते हैं, किन्तु श्वेताम्बर शास्त्र में तिलकानगर और तिलकावती अथवा .. कनकतिलका माता बतलाई गई हैं। इनमें अग्नि वेग का नाम • किरणवेग है। वह अपने पुत्र हिमगिरि को राज्य दे मुनि हुआ, ऐसा - दिगम्बर शास्त्र कहते हैं। श्वेताम्बर के अनुसार उसके पुत्र का नाम किरणतेजस था और वह मुनि हो वैताढ्य पर्वत पर एक मूर्ति के सहारे 'तपस्या करता रहा। . ५. श्वेताम्बर शास्त्र वज्रनाभि को जन्म से मिथ्यात्वी और साधु लोकचन्द्र द्वारा सम्यकत्व लाभ करते बतलाते हैं। वह उसके पुत्र का नाम शक्रायुध कहते हैं। दिगम्बर शास्त्र जन्म से ही जैनी बतलाते और . उसके पुत्र के नाम का उल्लेख नहीं करते हैं। श्वेताम्बर, वज्रनाभि का जन्मस्थान शुभंकरा नगरी बतलाते और उनकी माता का नाम लक्ष्मीवती और स्त्री विजया बतलाते हैं।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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