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तीर्थंकर पार्श्वनाथ २. कल्पसूत्र
भावदेवसूरि गण ८ गणधर १० :
आर्यदत्त, आर्यघोष, वशिष्ठ, ब्रह्मनायक
सोम, श्रीधर, वारिषेण, भद्रयशस्, जय, विजय. गणधर ८
आर्य घोष, शुभ, वशिष्ठ, ब्रह्मचारिण, सौम्य, श्रीधर वीरभद्र, यशस
३. कल्पसूत्र में आर्यदत्त की संरक्षता में १६००० श्रमण, पुष्पकला आर्यिका
की प्रमुखता में ३८००० आर्यिकाएं, १६४०० श्रावक और ३२७००० श्राविकाएं लिखी हैं। भावदेव सूरि के ग्रंथ में यह संख्या इस रूप में
उपलब्ध नहीं है। ४. शत्रुञ्जय माहात्म्य (१४/१-९७) में भी पूर्व भवों का वर्णन नहीं है।
उसमें प्राणत कल्प से भगवान् का चरित्र प्रारम्भ किया गया है। इसमें कमठ की शत्रुता का उल्लेख संक्षिप्त है (१४-४२; दशभवारति : कठासुर :)। विवाह का उल्लेख इसमें भी है; किन्तु इसमें पार्श्वनाथ की पत्नी प्रभावती को प्रसेनजित के स्थान पर नरवर्मन की पुत्री लिखा है। प्रसेनजित नरवर्मन का पुत्र है। भावदेव सूरि ने प्रभावती को प्रसेनजित की पुत्री लिखा है (५/१४५)। किन्तु बौद्धादि ग्रंथों से प्रकट है कि प्रसेनजित भगवान् बुद्ध के समकालीन थे। (Kshatriya Clans in Buddhist India, pp. 128-129)। बाद के ग्रंथों में पूर्व भव का वर्णन संभवत: दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथों के आधार पर विभिन्न ढंगों से लिखा गया प्रतीत होता है।
अब हम दिगम्बर और श्वेताम्बर शास्त्रों में परस्पर तत्सम्बंधी अन्तर का निरीक्षण करेंगे।