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________________ प्रथमानुयोग में तीर्थंकर पार्श्वनाथ २१९ (१)१० गणधर (२) ३५० पूर्वधारी (३) १०९०० शिक्षक साधु (४) १४०० अवधिज्ञानी (५) १००० केवलज्ञानी (६) १००० विक्रिया धारी (७) ७५० मन:पर्यय ज्ञानी ( ८ ) ६०० वादी हरिवंश पुराण में उपरोक्त संख्याएं निम्न प्रकार हैं:. (१) १० गणधर (२) ३५० पूर्वधारी (३) १०९०० शिक्षक (४) १४०० अवधिज्ञानी (५) १००० केवल ज्ञानी (६) १००० विक्रिया धारी (७) ७५० विपुलमती (८) ६०० वादी वादिराजसूंरि ने यह संख्यायें नहीं दी हैं । २५: हरिवंशपुराण में आर्यिका ३८०००, श्रावक १००००० और श्राविकाएं ३००००० लिखी हैं। भूधरदास ने आर्यिका संख्या २६००० और शेष ने ३६००० बतलाई है। २६. उत्तरपुराण, संकलकीर्ति, चंद्रकीर्ति और भूधरदास ने भगवान् को मोक्ष लाभ प्रतिमायोग से प्रात:काल लिखा है, किन्तु हरिवंशपुराण में कायोत्सर्ग रूप से सांयंकाल को हुआ बतलाया है । २७. भूधरदास ३६ मुनीश्वरों के साथ मोक्ष गए बतलाते हैं जिनसेनाचार्य ५३६, हरिवंशपुराण कुल ६०२०० शिष्यों को मोक्ष भया बतलाते हुए • उनके बाद ३ केवलज्ञानियों का मोक्ष बतलाते हैं । उपर्युक्त का समन्वय कई प्रकरणों में तिलोयपण्णत्ती एवं त्रिलोकसार द्वारा किया जा सकता है । उपर्युक्त अन्तर कोई विशेष प्रतीत नहीं होता है, किन्तुं श्वेताम्बर शास्त्रों में परस्पर विशेष अन्तर है। वह निम्न प्रकार है: १. कल्प सूत्र (१४९-१६९) में विवाह के अतिरिक्त भगवान् के पूर्व भवों का भी उल्लेख नहीं है । उसमें कमठ और नागराज 'धरण' का भी उल्लेख कहीं नहीं है। शेष माता, पिता, जन्म, नगर, आयु आदि में अन्य चरित्रों में समानता है । किन्तु भवदेव सूरि के चरित्र और कल्पसूत्र में जो उनके शिष्यों का वर्णन दिया है उसमें विशेष अन्तर है (१३५०-१३६०) ।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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