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तीर्थंकर पार्श्वनाथ भक्ति गंगा - के आलोक में भगवान पार्श्वनाथ
अर्थात् पार्श्व प्रभु से ऐसा प्रेम दान, शील, तपादि की भावना हृदय में लाकर करो जिससे तुम्हें अमतरपुर (मोक्ष) प्राप्त हो।
कनककीर्ति के अनुसार प्रभुपार्श्व की भक्ति रचे जी।
पदे सुने नर नारि, सुरंगा सुक्ख लहैं जी।। प्रभु पार्श्व की शरण ग्रहण कर लेने पर मोह पर विजय प्राप्त होती
अब तुम सरन गही प्रभु पारस मोह विजय कर लीनां ।५७ पार्श्व प्रभु के मुख-दर्शन से मिथ्यात्व का नाश होता हैजाके वदन विलौकते ही, नासो दूर मिथ्यात । ताहि नमहं नित भाव सों हो, पास जगत विख्यात ।५८
कविवर द्यानतराय जी ने पार्श्व प्रभु की शक्ति का फल सब कार्यों में सफलता, धन, संपत्ति, मनोवांछित भोगों का संयोग, घर में कल्पवृक्ष, कामधेनु सेवारत, सुखद संयोग, दुर्लभ कार्य सुलभ, रोग-शोक-दुखों का पलायन, देवों द्वारा सेवा, विघ्नों का मंगलरूप होना, डायन, भूत-पिशाच के छल से मुक्ति, राज्य भय, चोर-भय का अभाव, यश और आदर की प्राप्ति, सौभाग्य, स्वर्ग एवं मोक्ष की प्राप्ति बताया है यथा - ...भोर भयौ भज पारस नाथ, सफल होहि तेरे सब काज ।
धन सम्पति मन-वांछित भोग, सब विधि आन बने संयोग।। ... कल्प वृक्ष ताके घर रहे, कामधेनु नित सेवा बहे।
पारस चिंतामणि समुदाय, हित सों अश मिले सुखदाय।। दुर्लभ तें सुलभ्य है जाय, रोग-सोग-दुख दूर पलाय। सेवा देव करे मन लाय, विघ्न उलट मंगल ठहराय।। डायन भूत पिशाच न छले, राज चोर को जोर न चले। - जत आदर सौभाग्य प्रकास, द्यानत सुरग मुकति पद वास९ ।।