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________________ २०८ तीर्थंकर पार्श्वनाथ - मनोहर कवि की दृष्टि में भ. पार्श्व की भक्ति मनोवांछित फल देने वाली है चित्त पारस चरन लगाइयौ, तब मन वांछित फल होइ।६० । अजयराज की दृष्टि में जिस दिन पार्श्व प्रभु से भेंट हो जाय उस दिन जन्म सफल हो जाता है, जन्म-जन्म के पाप मिट जाते हैं और जब प्रभु अपना मानलें तो समझो कि जन्म कृतार्थ हो गया है और कर्मरूपी कलंक रहित पद जान लिया है, यथा - जनम सफल भयो आज पार्स प्रभु भेटियो। जनम-जनम को पाप आज सब मेटियो।। . जनम कृतारथ आज जु अपनौ मानियौ। कर्म कलंक रहित पद अपनो जानियौ ।।। इस प्रकार तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ की भक्ति इहलौकिक एवं पारलौकिक फल प्राप्त कराने वाली है। अब यह हम भक्तों पर निर्भर करता है कि हम अपनी भक्ति में किस प्रकार विशेषता, शुचिता, शुभ्रता एवं उच्चता ला सकते हैं। हमारी भक्ति में जितनी प्रखरता होगी हम भी उतनी पवित्रता को प्राप्त कर सकेंगे, यहाँ तक कि सच्चे मन-वचन काय से भक्ति करते-करते एक दिन स्वयं पार्श्वमय पार्श्वसम बन जायेंगे। भ. पार्श्व की शक्ति के बिना सब क्रियायें निष्फल सर्वजनों के लिए इष्ट भ. पार्श्वनाथ की भक्ति है जिसके लिए उनके प्रति सच्चा श्रद्धान आवश्यक है। जो भ. पार्श्व की भक्ति छोड़कर अन्यान्य क्रियायें करते हैं उनकी वे सब क्रियायें निष्फल हैं। मनोहर कवि लिखते हैं - जाप जपो भावे ताप तपो भावू व्रत करौ जु लहौ सब भेदं । नगर रहो भानु-धूप सहो तीरथ जाय करो बहु खेदं ।।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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