________________
२०२
तीर्थंकर पार्श्वनाथ
-
नाम-मंत्र जै जपें भव्य तिन, अद्यहित नशत अशेषा हैं ।३८ ।
जगतराम कहते हैं कि : . जगतराम पास ना जपो यों विचारि काम ।
सबे सिद्धि होत पूज्यगुरू जीवतात रे।३९ अर्थात् भगवान् पार्श्व के नाम का जो कार्य विचार कर नाम जपता है उसे सर्व सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। पार्श्व प्रभु के नाम की ही महिमा है कि उनका जन्मस्थान आबाद है। निर्वाण स्थल के दर्शन किये बिना भक्तों का जीवन सफल नहीं होता।
तीर्थंकर पार्श्व प्रभु के नाम की महिमा का प्रभाव देखिये कि भंक्तिभाव से प्रेरित होकर 'जगराम' कवि उन्हीं पार्श्वनाथ से कह उठते हैं कि - हे प्रभु पार्श्वनाथ इस बात की आस पूरी कर दो। आस (आशा) यही है कि आपके नाममंत्र का जाप करने के लिए मुझे एक, जाप (माला) प्राप्त हो जायें। पंक्तियां द्रष्टव्य हैं।
पूरो जगरामदास आस प्रभु पारसनाथ। पावों नाम मंत्र के जपावन की जाखिनी।
मिथ्या मान्यताओं का खण्डन
तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय में अनेक मिथ्या मान्यताओं का प्रचलन था जिसका खण्डन करते हुए भक्त कवियों ने पार्श्व प्रभु की शक्ति करने के लिए प्रेरित किया। उनका सोच था कि जब एक पार्श्व प्रभु की शक्ति ही सुब कुछ देने वाली है तब अन्यत्र देवी-देवताओं को पूजने की क्या आवश्यकता है? भैया भगवती दास जी कहते हैं :
काहे को देशा-दिशांतर धावत, काहे रिझावत इंद-नरिंद। काहे को देवी औ देव मनावत, काहे को शीस नवावत चंद।। काहे को सूरज सो कर जोरत, काहे निहोरत मूढ़ मुनिन्द? काहे को शोच करे दिन रैन तू, सेवत क्यों नहिं पार्श्व जिनंद।"