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तीर्थंकर पार्श्वनाथ ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में (त्रिदिवसीय संगोष्ठी की कार्यवाही)
परम पूज्य सराकोद्धारक श्रमण संत उपाध्याय श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज एवं परम पूज्य मौनमूर्ति मुनि श्री 108 वैराग्य सागर जी महाराज के सिान्निध्य में जम्बूस्वामी. दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र, चौरासी, मथुरा (उ. प्र.) में श्री गणेशवर्णी दिगम्बर जैन संस्थान, वाराणसी के द्वारा आयोजित "तीर्थंकर पार्श्वनाथ-ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में", विषयक राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी श्री नीरज जैन (सतना) की अध्यक्षता एवं डॉ. जितेन्द्र कुमार निदेशक, संग्रहालय-मथुरा (उ.प्र.) के मुख्यातिथ्य में डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती" (बुरहानपुर) के द्वारा मंगलाचरण, डॉ. श्री रंजन सूरि देव के करकमलों द्वारा दीप प्रज्जवलन के उपरान्त प्रारम्भ हई। डॉ. सुरेशचन्द जैन (वाराणसी) सचिव संगोष्ठी एवं निदेशक-श्री गणेशवर्णी दि. जैन संस्थान ने प्रारम्भिक वक्तव्य दिया। अनन्तर संगोष्ठी संयोजक डॉ. अशोक कुमार जैन (रुड़की) ने श्री गणेशवर्णी दि. जैन संस्थान का परिचय देते हुए बताया कि "आज से 50 वर्ष पूर्व स्थापित श्री गणेशवर्णी ग्रन्थमाला का विकसित रूप श्री गणेशवर्णी दिगम्बर जैन संस्थान है, जिसकी स्थापना सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र जी शास्त्री ने सन् 1972 में की थी। ग्रन्थ प्रकाशन, व्याख्यान माला एवं संगोष्ठियों के आयोजन जैसे महत्कार्य संस्थान द्वारा किये जा रहे हैं। पिछले 10 वर्ष से मैं सचिव रूप में सक्रिय रूप से संस्थान को देख रहा हूं। इस मध्य संस्थान ने गतिशील संस्था का रूप प्राप्त किया है। आज से 2 वर्ष पूर्व परमपूज्य उपाध्याय श्री के सानिध्य में इस संगोष्ठी की रूपरेखा बनी थी, जो आज मूर्त हो रही है। श्रमण संस्कृति को जीवन्त बनाये रखने की कड़ी में यह संगोष्ठी है।" डॉ. अशोक जी ने आगन्तुक विद्वानों का हार्दिक अभिनन्दन किया।