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- तीर्थंकर पार्श्वनाथ परिप्रेक्ष्य' विषय पर उपाध्यायश्री के सान्निध्य में हुई गोष्ठी में उपाध्यायश्री ने कहा कि आज भगवान पार्श्वनाथ के विविध पक्षों के उद्घाटन की जरूरत है। कोई भी संस्कृति पुरातत्व, शास्त्र व कलाकृतियों के संरक्षण से ही सुरक्षित रह सकती है। उन्होंने कहा कि 1150 स्थानों पर हुए शास्त्रार्थ के उपरान्त जैनत्व सुरक्षित रह पाया है। . 22 अक्टूबर के नवभारत टाइम्स के अनुसार चातुर्मास के दौरान आचार्य शांति सागर छाणी महाराज का 21वां दीक्षा दिवस समारोह मनाया गया। जैन पत्रों के अलावा अन्य अखबारों ने भी इस संबंध में खबरें प्रकाशित की। 12 अक्टूबर को उपाध्यायश्री का पिच्छी परिवर्तन का आयोजन हुआ। जैन गजट ने लिखा "पिच्छी परिवर्तन समारोह की अध्यक्षता भारतीय जैन मिलन के अध्यक्ष वीर सत्येन्द्र कुमार जैन ने की। इस अवसर पर श्री ज्ञानसागर जैन युवा मंडल, शाहदरा द्वारा प्रकाशित पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं निर्देशिका का विमोचन
हुआ।"
और अंत में वह दिन भी आ पहुंचा जब उपाध्यायश्री मथुरा जी से विहार कर गए। उपाध्यायश्री के ससंघ विहार का दृश्य ऐसा था जैसे राम वन को जा रहे हों और अयोध्यावासी सजल आंखों से उनको रोकने की कोशिश कर रहे हों। पर जिनका अवतरण जगत कल्याण के लिए हुआ है वे किसी एक ही स्थान पर टिके नहीं रह सकते। जैन गजट ने लिखा विहार का दृश्य अनोखा था, उमड़ती हुई भीड़ की आंखों में से आंसुओं की धार निकल रही थी।...क्षण भर को सुध-बुध खोकर सब कुछ भूल गए, जयघोषों के नारों के साथ हजारों लोग डीग ग्राम तक उपाध्यायश्री के साथ आए'। डीग गाँव से वापस जाते श्रद्धालु एक ही बात पूछ रहे थे "महाराजश्री फिर कब आओगे।"
सुशील उपाध्याय, संवाददाता अमर उजाला रुड़की