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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
करने से पाठक मात्र इसी ग्रन्थ के अध्ययन से संक्षेप में जैनधर्म के विविध पक्षों को हृदयंगम कर सकता है।
कमठ के बैर का अन्त और सम्यग्दर्शन की प्राप्ति
कवि ने अन्त में भगवान् के दिव्य उपदेश के प्रभाव का उल्लेख करते हुए लिखा है कि-कमठ के जीव उस ज्योतिष्क देव ने भगवान् की दिव्य-ध्वनि रूपी अमृत को पीकर अनन्त भव से उत्पन्न मिथ्या बैर रूपी विष को नष्ट कर दिया तथा जगत् के स्वामी श्री पार्श्व जिनेन्द्र को नमस्कार कर चन्द्रमा के समान निर्मल, शंकादि दोषों से रहित मुक्ति के उत्कृष्ट बीज स्वरूप सम्यग्दर्शन को ग्रहण किया ।३९ इससे स्पष्ट है कि महापापी जीव भी जिनेन्द्र वाणी के प्रभाव से आत्म-कल्याण करने में समर्थ
है।
भगवान् पार्श्वनाथ का लोक व्यापी प्रभाव . ___लोक में पूजा और प्रतिष्ठा वही व्यक्ति प्राप्त करता है जो जन-जन के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर लोकमंगल के कार्य करता है। यत: भगवान् पार्श्वनाथ ने केवलज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् कुरु, कौशल, काशी, सह्य, पुण्ड्र, मालव, अंग, बंग, कलिंग, पंचाल, मगध, विदर्भ, भद्रदेश तथा दशार्ण आदि अनेक स्थानों में विहार करके जीवों को सन्मार्ग का उपदेश दिया था, अत: वे जन-जन के प्रिय बन गये। उनका प्रभाव लोकव्यापी हो गया। वे लोक पूजित हो गये। भगवान् पार्श्वनाथ के लोकव्यापी प्रभाव का उल्लेख करते हुये श्री बलभद्र जैन ने लिखा है कि - भगवान् पार्श्वनाथ का सर्वसाधारण पर कितना प्रभाव था, यह आज भी बंगाल, बिहार, उड़ीसा में फैले हुए लाखों सराकों, बंगाल के मेदिनीपुर जिले के सद्गोपों, उड़ीसा के रंगिया जाति के लोगों, अलक बाबा आदि के जीवन-व्यवहार को देखने से चलता है। यद्यपि भगवान् पार्श्वनाथ को लगभग पौने तीन हजार वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और ये जातियां किन्हीं बाध्यताओं के कारण जैनधर्म का परित्याग कर चुकी हैं, किन्तु आज भी ये जातियां पार्श्वनाथ को अपना आद्य