________________
भट्टारक सकलकीर्ति और उनका पार्श्वनाथचरितम्
१७५ हैं उसी प्रकार पूजी हुई जिन प्रतिमाएं पूजा करने वाले पुरुषों को महान् भोग देती हैं। जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न सत्पुरुषों को मन से चिन्तित पदार्थ देता है उसी प्रकार अचेतन प्रतिमा भी भक्ति करने वालों को मन से चिन्तित पदार्थ देती है। जिस प्रकार अचेतन मणि, मन्त्र, औषधि आदि विष तथा रोगादिक को नष्ट करते हैं उसी प्रकार अचेतन प्रतिमाएं भी पूजा-भक्ति करने वाले पुरुषों के विष तथा रोगादिक को नष्ट करती हैं।१७
अन्य विविध वर्णन - उपर्युक्त के अतिरिक्त कवि ने अन्य अनेक विषयों का समायोजन अपने इस ग्रन्थ में किया है। कवि का कहना है कि - गृहस्थ धर्म का ठीक-ठीक पालन करने से प्राणियों को सोलह स्वर्ग तक की प्राप्ति होती है और क्रम से सुख के सागर स्वरूप निर्वाण को प्राप्त होते हैं।८ धर्म से अर्थ, अर्थ से काम और क्रम से मोक्ष प्राप्त होता है ।१९
प्रसंग प्राप्त होने पर कवि ने अन्य जिन विषयों का विवेचन किया है. उनमें दश धर्म२० सम्यग्दर्शन के आठ अंग, षोडश कारण भावनाएँ२२ 'सोलह स्वप्न, स्वप्नों का फल", देवियों द्वारा तीर्थंकर की माता से अनेक प्रश्न और माता द्वारा उनके उत्तर२५, प्रहेलिका२६, क्रिया गुप्ति७, और निरोष्ठ्य काव्य८ की रचना, मेरु पर्वत एवं पाण्डुक शिला२९ का वर्णन,
आनन्द नाटक, पार्श्वनाथ भगवान् के शरीर के एक सौ आठ लक्षण, द्वादशनुप्रेक्षा, पञ्च महाव्रत, पञ्च महाव्रतों की पांच-पांच भावनायें, ऐरावत हाथी२५, समवसरण, कौन कर्म से जीव क्या प्राप्त करता है, इसका विस्तार से विवेचन और भगवान् के १०८ सार्थक नामों की सूची विशेष रूप से उल्लेखनीय है। . इन विषयों के विवेचन से इतना तो स्पष्ट है कि कवि ने इस 'पार्श्वनाथचरितम्' में यद्यपि भगवान पार्श्वनाथ के दश भवों का विशेष रूप सें वर्णन किया है, किन्तु भिन्न-भिन्न प्रसंगों में जैनधर्म एवं दर्शन के अनेक गूढ़ सिद्धान्तों तथा आचार सम्बन्धी विषयों का सांगोपांग वर्णन