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- तीर्थंकर पार्श्वनाथ
अचेतन जिन-प्रतिमा की पूजा से पुण्य-प्राप्ति
अनेक प्रश्नों का समाधान भी इस ग्रन्थ में किया गया है। अचेतन जिन-प्रतिमा की पूजा पुण्य का कारण कैसे होती है? इसका समाधान करते हुये कवि का कहना है कि - जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा तथा मन्दिर आदि भव्य जीवों के पुण्य का कारण नियम से हैं, इसमें संशय नहीं। जिनेन्द्र भगवान् के उत्तम बिम्ब आदि का दर्शन करने वाले धर्माभिलाषी भव्य जीवों के परिणाम तत्काल शुभ-श्रेष्ठ होते हैं। जिनेन्द्र भगवान् का सादृश्य रखने वाली महाप्रतिमाओं के दर्शन से साक्षात् जिनेन्द्र भगवान् का स्मरण होता है, निरन्तर उनका साक्षात् ध्यान होता है और उसके फल स्वरूप पापों का निरोध होता है। शस्त्र, आभरण, वस्त्रादि, विकार पूर्ण आकार, रोगादिक महान् दोष और क्रूरता आदि अवगुणों का समूह जिस प्रकार पृथिवी तल पर जिन प्रतिमाओं में नहीं है उसी प्रकार धर्मतीर्थ प्रवृत्ति करने वाले श्री जिनेन्द्र देव में नहीं है ।१६ ___साम्यता आदि गुण तथा कीर्ति, कान्ति और शान्ति आदि विशेषतायें जिस प्रकार जिनबिम्ब में दिखलाई देती हैं उसी प्रकार श्री जिनेन्द्र देव में विद्यमान हैं। जिस प्रकार जिन प्रतिमाओं में मुक्ति का साधनभूत स्थिर वज्रासन और नासाग्रदृष्टि देखी जाती है उसी प्रकार धर्म के प्रवर्तक जिनेन्द्र देव में वे सब विद्यमान हैं। इस प्रकार तीर्थंकर प्रतिमाओं के लक्षण देखने से उनकी भक्ति करने वाले पुरुषों को तीर्थंकर भगवान का परम निश्चय होता है। अर्थात् वस्त्राभूषण तथा रागद्वेष सूचक अन्य चिन्हों से रहित जिन-प्रतिमाओं के दर्शन से वीतराग सर्वज्ञ देव के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान होता है। इसलिये उन जैसे परिणाम होने से तथा उनका ध्यान और स्मरण आने से तथा उनका निश्चय होने से धर्मात्मा जनों को महान् पुण्य होता है। पुण्योदय से इस लोक में पुण्यशाली जनों की इस भव तथा परभव में त्रिलोक सम्बन्धी सभी अभिलाषित पदार्थों की सिद्धियां सम्पन्न होती हैं। अत: तीर्थंकर प्रतिमाओं की भक्तिपूर्वक पूजा करने से सत्पुरुषों को समस्त मनोवाञ्छित फल पृथिवी तल पर तथा स्वर्ग लोक में प्राप्त होते हैं। जिस प्रकार दशांग कल्पवृक्ष दान चाहने वाले पुरुषों को संकल्पित महान् भोग देते