SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७७ भट्टारक सकलकीर्ति और उनका पार्श्वनाथचरितम् कलदेवता मानती हैं। पार्श्वनाथ के उपदेश परम्परागत रूप से इन जातियों के जीवन में अब तक चले आ रहे हैं। पार्श्वनाथ के सिद्धान्तों के संस्कार इनके जीवन में गहरी जड़ जमा चुके हैं। इसलिये ये लोग अहिंसा में पूर्ण विश्वास करते हैं, मांस भक्षण नहीं करते, जल छान कर पीते हैं, जैन तीर्थों की यात्रा करते हैं. अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और महावीर की उपासना करते हैं। १ आगे वे लिखते हैं कि उनके लोक-व्यापी प्रभाव का ही यह परिणाम है कि तीर्थकर मूर्तियों में सर्वाधिक मूर्तियां पार्श्वनाथ की ही उपलब्ध होती हैं और उनके कारण पद्मावती देवी की भी इतनी ख्याति हुई कि आज भी शासन-देवियों में सबसे अधिक मूर्तियां पद्मावती की ही मिलती हैं । २ इसी प्रसंग में दिल्ली के दिगम्बर जैन लाल मन्दिर और वाराणसी के भेलूपुर स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर में स्थापित पद्मावती देवी की मूर्तियों की पूजा-प्रतिष्ठा भी उल्लेखनीय है। साथ ही अन्य अनेक नगरों के जैन मन्दिरों में पद्मावती देवी की स्थापना के मूल में भी भगवान् पार्श्वनाथ का। लोकव्यापी प्रभाव ही कारण है। ...पद्मावती कल्प' आदि ग्रन्थों की रचना और उनके माध्यम से तन्त्र-मन्त्रों की सिद्धि द्वारा लौकिक सम्पत्ति की प्राप्ति आदि के मल में भी भगवान् पार्श्वनाथ की ही भक्ति कारण कही जा सकती है। - ऐसे. लोक पूजित भगवान् पार्श्वनाथ की शतश: वन्दना करता हुआ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं। संदर्भ १. जैन साहित्य का इतिहास (सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, भाग १, पृष्ठ ४५२. २. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ३, पृष्ठ ३२९-३३० ३. द्रष्टव्य, जैन धर्म का प्राचीन इतिहास (परमानन्द शास्त्री), भाग २, पृष्ठ ४९२-९३ ४. . वादिराजकृत पार्श्वनाथचरित का समीक्षात्मक अध्ययन (डॉ. जयकुमार जैन), . . पृष्ठ २
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy