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भट्टारक सकलकीर्ति और उनका पार्श्वनाथचरितम् गद्दी पर बैठे थे और उनकी मृत्यु गुजरात के महसाना नामक स्थान पर वि.सं. १४९९ में हुई। उनका समाधिस्थल महसाना में बना हुआ है।
भट्टारक सकलकीर्ति संस्कृत भाषा के प्रौढ़ और प्रतिष्ठित विद्वान् थे। उनके द्वारा संस्कृत भाषा में लिखित उनतीस रचनाओं का उल्लेख मिलता है। साथ ही राजस्थानी भाषा में निबद्ध लगभग पन्द्रह रचनाएं उनकी बहुमुखी प्रतिभा के दस्तावेज हैं।
तिरेसठ शलाका-पुरुष
जैनधर्म में बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रति-नारायण, नौ बलभद्र और चौबीस तीर्थंकरों की गणना तिरेसठ शलाका पुरुषों अर्थात् श्रेष्ठ पुरुषों के रूप में की गई है और इन्हीं का जीवन-चरित लोक मंगल स्वरूप स्वीकार किया गया है। अत: इन्हीं महापुरुषों का चरित्र-चित्रण जैन पुराणों अथवा जैन काव्यों में सामान्य रूप से आदर्श मानकर चित्रित किया है। उक्त तिरेसठ शलाका-पुरुषों के अतिरिक्त अन्य जिन महापुरुषों को जैन चरित-काव्यों में प्रमुख स्थान मिला है उनमें चौबीस कामदेवों का नाम उल्लेखनीय है । इन महापुरुषों के जीवन से ही हमें यह शिक्षा मिलती है कि 'रामवद् वर्तिव्यं, न रावणांदिवत्' - अर्थात् राम की तरह आचरण करना चाहिये, रावण आदि की तरह नहीं।
पार्श्वनाथ-चरितम्
. भट्टारक सकलकीर्ति ने अपने चरित काव्यों में जिन महापुरुषों के आदर्शमयी जीवन की झांकी प्रस्तुत की है, उनमें भगवान् पार्श्वनाथ का . लोक मंगलकारी जीवन-चरित 'पार्श्वनाथ-चरितम्' के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
भगवान् पार्श्वनाथ और कमठ ... चौबीस तीर्थंकरों में भगवान् पार्श्वनाथ, तेइसवें तीर्थंकर के रूप में प्रतिष्ठित हैं। ये ऐतिहासिक महापुरुष हैं। पुराणों एवं काव्यों के माध्यम से