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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
कृष्ण एकादशी को प्रात:काल दीक्षित होने का उल्लेख किया है। आ. पद्मकीर्ति ने उनकी दीक्षा तिथि, पालकी, दीक्षित वन का उल्लेख नहीं किया। केवल आठ उपवास का निश्चय कर जिन दीक्षा लेना लिखा है। महाकवि रइधु ने कहा है कि पौष शुक्ला दशमी को भ. पार्श्वनाथ ने दीक्षा ग्रहण की थी।५ पालकी का नामोल्लेख रइधु ने भी नहीं किया। किन्तु एक . ऐसे यान का उल्लेख किया जो सूर्य के रथ के समान था। उसी पर बैठ कर पार्श्वनाथ ने अहिच्छत्र नगर के वन में जाकर दीक्षा ली थी।
प्रथम पारणा
भ. पार्श्वनाथ की प्रथम पारणा कब-कहां हुई और किसको इस. पारणा कराने का सौभाग्य मिला? यह भी चिन्तनीय है। इस संबंध में पासणाहचरिउ' के प्रणेताओं में एकरूपता नहीं है। आ, पुष्पदन्त ने आचार्य गुणभद्र का अनुकरण करते हुए मत प्रकट किया है कि भ. पार्श्वनाथ की प्रथम पारणा अष्टोपवास के बाद गुल्मखेट के राजा ब्रह्म के यहाँ हुई थी । पुष्पदन्त ने राजा के नाम का उल्लेख नहीं किया जब कि उत्तरपुराण में राजा का नाम श्याम वर्णवाला धन्य लिखा है८ | पद्मकीर्ति६९ और रइधु इस बात से तो सहमत हैं कि उनकी प्रथम पारणा गजपुर के राजा वरदत्त के यहां अष्टोपवास के बाद हुई थी। केवल यतिवृषभ ने ही अष्टोपवास के बाद प्रथम पारणा का उल्लेख किया है।
उपसर्ग निवारण
___ जब दीक्षा ले कर पार्श्वनाथ घोर तप कर रहे थे, उसी समय कमठ के जीव ने. जो उनके जन्मान्तरों का वैरी था, सात दिनों तक भयानक उपसर्ग कर उन्हें जान से मारने का प्रयास किया। इसका वर्णन पुष्पदन्त आदि सभी अपभ्रंश के महाकवियों ने किया है। यहां प्रश्न यह है कि उपसर्ग करने वाला देव कौन था? जिस तापस ने नाग के जोड़े को मरणासन्न कर दिया था उसने अभिमान पूर्वक अनशन तप कर और जीव हिंसा तथा परिग्रह का त्याग कर देव योनि प्राप्त की थी। पुष्पदन्त और