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अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ
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उस देव का नाम संवर बतला कर आचार्य गुणभद्र का अनुकरण किया है७२ किन्तु पद्मकीर्ति ने उसे मेघमल्ल (मेघमाली) और कमठ कहा है । ७३
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उस संवर देव या मेघमाली देव कृत भयंकर उपसर्गों का निवारण कैसे हुआ? इस संबंध में पुष्पदन्त ३ ने आचार्य गुणभद्र७५ का अनुकरण करते हुए कहा है कि पूर्वजन्म में मंत्र सुनाने से उपकृत हुए धरणेन्द्र और पद्मावती पृथ्वी से बाहर आये । धरणेन्द्र ने भगवान् पार्श्वनाथ को चारों ओर से घेर कर अपनी गोदी में उठा लिया। पद्मावती वज्रमय छत्र तान वहां खड़ी हो गई। इस प्रकार उस भयानक महावृष्टि रूप उपसर्ग को उन्होंने विनष्ट किया। पद्मकीर्ति७६ ने उपसर्ग निवारण की चर्चा करते हुए पुष्पदन्त का अनुकरण किया है। रंइधु के उक्त कथन में कुछ अंतर है। उन्होंने लिखा है कि फणीश्वर और पद्मावती ने प्रदक्षिणा दे स्तुति आदि करने के पश्चात् उपसर्ग दूर करने वाला कमलासन बनाया और उस पर पारसनाथ को . विराजमान कर उसे अपने मस्तक पर रख कर उनके ऊपर होने वाले उपसर्गों को दूर किया। ७७
केवल ज्ञान की प्राप्ति
भगवान् पार्श्वनाथ को कब और कहां केवलं ज्ञान की प्राप्ति हुई? इस संबंध में उक्त आचार्यों में मतैक्य नहीं है। आचार्य यतिवृषभ और गुणभद्रं" का अनुकरण करते हुए पुष्पदन्त" और रइधु" ने चैत्रमाह के कृष्ण पक्ष में उन्हें केवल ज्ञान होने का उल्लेख किया है । किन्तु उक्त ज्ञान प्रकट होने की तिथि पुष्पदन्त ने प्रतिपदा, रइधु ने यतिवृषभ की तरह . चतुर्थी और गुणभद्र ने चतुर्दशी लिखी है । आ. पद्मकीर्ति इस संबंध में मौन हैं । रइधु को छोड़ कर पुष्पदन्त ने यतिवृषभ और गुणभद्र की तरह माना है कि उन्हें यह ज्ञान विशाखा नक्षत्र में प्राप्त हुआ था । किन्तु किसी भी पासणाहचरिउ में न तो यतिवृषभ की तरह उक्त ज्ञान पूर्वाह्न में होने का निर्देश है और न गुणभद्र की तरह प्रात: काल में होने का निर्देश है । यह केवलज्ञान पार्श्वनाथ को दीक्षा-वन में होने का उल्लेख पुष्पदन्त ने किया