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________________ अपभ्रंश साहित्य में पार्श्वनाथ १५५ किसी ने ऐसा नहीं कहा है कि जब वे अपने माता के गर्भ में थे तब उनकी माता ने पार्श्व अर्थात् बगल में काला सर्प देखा था, इसलिए उनका नाम पार्श्व या पार्श्वनाथ हुआ। विवाह कराने का प्रस्ताव ___ आ. पद्मकीर्ति और रइधु ने पार्श्वनाथ और पवनराज के मध्य घमासान युद्ध होने का विस्तार से वर्णन करने बाद में उल्लेख किया है कि जब उनके मामा रविकीर्ति (अर्ककीर्ति) ने अपनी बेटी प्रभावती के साथ विवाह कराने का उनके समक्ष प्रस्ताव रखा तो पार्श्वनाथ ने उसे स्वीकार कर लिया। किन्तु उनके विवाह होने का किसी भी पासणाहचरिउ में उल्लेख नहीं हुआ है। इसलिए मजूमदार का यह कथन सत्य नहीं है कि पार्श्वनाथ का विवाह हुआ था।५६ वैराग्य का कारण . .: भ. पार्श्वनाथ के वैराग्य होने के कारणों का उल्लेख सभी पासणहचरिउ' साहित्य में उपलब्ध है। आ पुष्पदन्त ने इसका कारण आचार्य गुणसेन की तरह ७.जातिस्मरण माना है।८ जब कि आ. पद्मकीर्ति५९ और रइधु ने लकड़ी के मध्य से निकले अर्धजले सर्प की मुत्यु के दृश्य को उनके वैराग्य का कारण माना है।६१ दीक्षा _भ. पार्श्वनाथ की दीक्षा कब और कहां हुई यह भी विचारणीय है। आचार्य पुष्पदन्त २ ने तिलोयपण्णत्ति और उत्तरपुराण' का अनुकरण करते हुए लिखा है कि विमला नामक पालकी पर बैठ कर अश्वस्थ वन में पौष शुक्ला एकादशी को पूर्वाहन में तीन सौ राजाओं के साथ भ. पार्श्वनाथ ने जिन दीक्षा ग्रहण की थी। आ. यतिवृषभ के अनुसार यह दीक्षा विशाखा नक्षत्र में हुई थी। पुष्पदन्त और गुणभद्र में अन्तर यह है कि गुणभद्र ने पौष
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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