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________________ तीर्थंकर पार्श्वनाथ १५४ . की तरह वर्मिला नाम दिया। इन दोनों ने उनका नाम वामा देवी लिखा पार्श्व की जन्म भूमि पुष्पदन्त आदि सभी आचार्यों ने पार्श्वनाथ की जन्म भूमि वाराणसी मानी है। जैन धर्म की दोनों परम्पराएं आज भी भेलपुर, वाराणसी. को उनकी जन्मभूमि मानती हैं। पार्श्व की जन्म तिथि ... भगवान् पार्श्वनाथ की जन्मतिथि के संबंध में आचार्यों में मतभेद नहीं है। आचार्य पद्मकीर्ति ने यद्यपि तिथि का उल्लेख नहीं किया, किन्तु आ. गुणभद्र की तरह माना है कि भ. नेमिनाथं के ८३७५० वर्षों बाद शुभ नक्षत्र योग में पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था।५ उल्लेखनीय है कि यतिवृषभ६ ने८४६५० वर्ष का अन्तराल भ. नेमिनाथ और पार्श्वनाथ के मध्य माना है। आ. पुष्पदन्त और रइधु ने यतिवृषभ और गुणभद्र का अनुकरण करते हुए पौष कृष्ण एकादशी को शुभ नक्षत्र में प्रात:काल भ. पार्श्व का जन्म होना माना है। किन्तु यतिवृषभ की तरह विशाखा नक्षत्र में उनके जन्म होने का किसी भी पासणाहचरिउ में उल्लेख नहीं हुआ है। पार्श्व का वंश और गोत्र आ. पद्मकीर्ति ओर रइधु को छोड़कर आ. पुष्पदन्त' ने भ. पार्श्व को उग्रवंशी कहकर गुणभद्र और यतिवृषभ का अनुकरण किया है। किन्तु उन्होंने उत्तरपुराण'२ की तरह पार्श्वनाथ के पिता को काश्यप गोत्री होने का उल्लेख नहीं किया। पार्श्व का नामकरण अपभ्रंश भाषा के सभी आचार्यों ने आ. गुणभद्र की तरह निर्देश किया है कि भ. पार्श्वनाथ का नामकरण इन्द्र ने अभिषेक के बाद किया था ।
SR No.002274
Book TitleTirthankar Parshwanath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Jain, Jaykumar Jain, Sureshchandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharti
Publication Year1999
Total Pages418
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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